नई दिल्ली. ग्वार एक उपयोगी चारा फसल है, जो कम बारिश वाले क्षेत्र में भी उगाया जा सकता है. यह दलहनी, प्रोटीन वाला चारा फसल है जो दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही उपयुक्त है. यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाता है. इसकी खेती ज्वार एवं बाजरा के साथ मिलाकर भी की जा सकती है. सबसे अच्छी बात ये है कि इस चारा फसल को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. हालांकि भारी मिट्टी और कम जल निकास वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है. उदासीन मिट्टी से क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है.
उन्नत किस्मों की बात की जाए तो “दुर्गापुर सफेद”, एफ.एस.-277, अगेती गुआरा-111 एवं नं.-2 है. इसके अलावा सब्जी वाले किस्म पूसा सदाबहार, पूसा मौसमी एवं पूसा नवहर है. इसकी फलियां सब्जी के रूप में इस्तेमाल करने के बाद हरा चारा के रूप में फसल को इस्तेमाल में लाया जाता है. इन सबकी उपज क्षमता 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा के रूप में प्राप्त किया जा सकता है.
बुआई का समयः इसकी बुआई मार्च से अप्रैल में गरमा फसल के रूप में, जून से जुलाई में बरसाती एवं अक्टूबर-नवम्बर में रबी फसल के रूप में की जाती है.
बीज दरः 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इसकी बुआई कतार से कतार की दूरी 45 सें.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें मी रखी जाती है.
बीजोपचारः कारबेंडाजिम या थीरम नामक फफूँद नाशी द्वारा ढाई ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुआई की जाती है.
खेती की तैयारी: ग्वार की खेती के लिए खेत की तैयारी बारीक ढंग से करने की आवश्यकता नहीं होती है. दो या तीन जुताई का पाटा चला कर खेत को समतल कर लेते हैं. खेत में 60 क्विंटल कम्पोस्ट डाल कर बुआई के 20 से 25 दिन पहले खेत में मिलाकर जुताई कर देते हैं.
उर्वरक प्रबन्धनः 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 42 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर बुआई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए.
सिंचाई प्रबन्धनः बरसाती फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. अन्य मौसम में एक से दो सिंचाई की जरूरत होती है. गर्म मौसम में तीन सिंचाई की जरूरत होती है. बारिश में खेत में पानी जमना नहीं चाहिए या तो अच्छी जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए.
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