नई दिल्ली. पशुपालन अपनी जगह फायदा पहुंचाने वाला बिजनेस तो है ही, अगर आपके पास फलों वाले बाग हैं और इसमें पशुओं के लिए चारा उगाएं तो मुनाफा डबल हो सकता है. क्योंकि उत्तर प्रदेश में बागवानी-चारागाह के जरिए फलों के बागों में चारा उत्पादन किया जा सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि राज्य में बंजर भूमि पर कृषि योग्य खेती मिट्टी और नमी की कमी के कारण मुश्किल है लेकिन कई वैकल्पिक जमीन हैं जो चारा उपलब्ध कराती हैं. जैसे सिल्वी-चारागाह, हॉर्टी-चारागाह और कृषि-बागवानी के तहत उगने वाली कई बहुउद्देशीय पेड़ों की प्रजातियां लकड़ी के अलावा पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध कराती हैं.
भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के मुताबिक बहुउद्देशीय वृक्ष प्रजातियों के पेड़ घरेलू पशुधन उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. पौष्टिक चारा उपलब्ध कराते हैं, इसके बदले में पशु दूध और मांस की आपूर्ति करते हैं. बहुउद्देशीय पेड़ों के साथ चरने वाले पशुओं को न केवल पौष्टिक चारा मिलता है, बल्कि गर्मी की तेज धूप में छांव वाला आश्रय भी मिल जाता है. उत्तर प्रदेश में, कृषि वानिकी में उगाई जाने वाली पेड़ों की प्रजातियों की पत्तियों का उपयोग आमतौर पर छोटे जुगाली करने वाले पशुओं और बड़े जुगाली करने वाले पशुओं के लिए चारे के रूप में किया जा रहा है, जो कि कम उत्पादन अवधि या चारे की कमी के दौरान पशुओं के लिए अच्छा विकल्प साबित हो रहा है.
यूपी में है इसकी गुंजाइश
उत्तर प्रदेश में मौजूदा बागों में चारा फसलों को शुरू करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और कई अवसर हैं. बागवानी प्रणाली चारागाह (घास और/या फलियां) और फलों के पेड़ों को इकट्ठा करती हैं ताकि कम कम उपजाऊ जमीन का उपयोग करके फल, चारा और ईंधन की लकड़ी की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा किया जा सके. वहीं चारा उत्पादकता के लिए आंवला और अमरूद आधारित बागवानी प्रणाली विकसित की गई है. इस मेथड में आजमाई गई घासों में सेंचरस सिलिएरिस, स्टाइलोसेंथेस सीब्राना और स्टाइलोसेंथेस हैमाटा शामिल हैं.
सालभर नहीं होगी चारे की कमी
उत्तर प्रदेश में, विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 0.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में आम की खेती की जाती है, जिसे यदि चारा फसलों (बाजरा नेपियर हाइब्रिड, गिनी घास, बारहमासी ज्वार और स्टाइलोसेन्थस) के अंतर्गत लगाया जाए तो भारी मात्रा में हरा चारा पैदा हो सकता है जो हमारे पशुओं की साल भर की हरे चारे की आवश्यकता को पूरा कर सकता है. आम तौर पर आम के पौधों के बीच की दूरी 10 मीटर गुणे 10 मीटर होती है, जो चारा फसलों को लगाने के लिए कम से कम 7-8 मीटर की जगह देता है. इन आम के बागों का इस्तेमाल राज्य में अतिरिक्त चारा उत्पादन के लिए किया जा सकता है.
कितने चारे का हो सकता है उत्पादन
IGFRI में विकसित बागवानी-चारागाह प्रणालियों में बारिश आधारित क्षेत्रों की बंजर भूमि पर 6.5-12 टन डीएम प्रति हेक्टेयर से चारे की अच्छी उत्पादन क्षमता है. बागवानी-चारागाह प्रणालियां मिट्टी के नुकसान को रोकने और नमी को संरक्षित करने के साथ-साथ चारा, फल और ईंधन की लकड़ी और इकोलॉजी सिस्टम संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा कर सकती है. लंबे समय तक रोटेशन के बाद यह मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीव एक्टीविटी में सुधार करता है. यह प्रणाली 2-4 ACU प्रति वर्ष का समर्थन करती है.
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