Home मछली पालन Fish Disease: मछलियों के लिए घातक हैं ये तीन बीमारियां, ऐसे करें बचाव
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Fish Disease: मछलियों के लिए घातक हैं ये तीन बीमारियां, ऐसे करें बचाव

मछली में कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो पूरे मछली के बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
तालाब में पाली गई मछली की तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली पालन वैसे तो तालाब में किया जाता है. लेकिन आजकल कई तकनीक से मछली पालन किया जा रहा है. मछली पालक गहरे तालाब खुदवाकर उसमें मछली पलते हैं और फिर अपना व्यापार करते हैं. हालांकि अब वैज्ञानिक तरीकों से फिश फार्मिंग बड़ी आसान हो गई है, जो कोई भी अपने घर पर मछली पालन करना चाहता है या खेत में पालन चाहता है तो वह नई टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसा कर सकता है. इतना ही नहीं अगर आप खेत में या घर पर मछली पालन करते हैं तो सरकार आपको सब्सिडी भी देती है.
मछली पालन को लेकर सरकार भी काम कर रही हैं, जिससे मछली उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हो रही है. लेकिन मछली में कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो पूरे मछली के बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकती हैं. आज जानते हैं ऐसी ही तीन प्रमुख बीमारियों के बारे में. मछली एक्सपर्ट से उनके रोकथाम की जानकारी भी आपको इस आर्टिकल में मिलेगी.

डेक्टाइलो गाइरोसिस, व गाइरो डेक्टाइलोसिस: इस बीमारी का लक्षण कार्प एवं हिंसात्मक मछलियों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. इसमें मछली के गलफड़े संक्रमित हो जाते हैं. इससे शरीर बदरंग और शरीर में वृद्धि नहीं होती है. वजन कम हो जाताहै. यह स्किन पर संक्रमित भाग की कोशिकाओं में घाव कर देती है. शल्कों का गिरना, अधिक श्लेषक और स्किन बदरंग हो जाती है. उपचार के लिए एक पीपीएम परमेगनेट के घोल में 30 मिनट तक रखते हैं. 1.2000 ऐसिटिक के घोल को दो प्रतिशत घोल नमक बारी-बारी से 2 मिनट के लिए डुबोएं. तालाब मेलेथियारन 0.25 पम 7 दिन के अंदर में तीन बार छिड़कें.

सफेद धब्बेदार रोग: सफेद धब्बेदार रोग एक्थियोथिरिस प्रोटोजोन की ओर से होता है. इसमें मछली की स्किन पंख व गलफड़े पर छोटे सफेद धब्बे हो जाते हैं. यह टिश्यू में रहकर टिश्यू को खत्म कर देते हैं. एक पीपीएम मेलाकाइट ग्रीन, 50 पीपीएम फॉर्मेलीन में 1.2 मिनट तक मछली को डुबाते हैं. पोखरों में 15 से 25 पीपीएम फॉर्मेलीन हर दूसरे दिन डालने से बीमारी खत्म हो जाती है.

माइक्रो एवं मिक्सोस्पोरीडिएसिस: इस बीमारी के लक्षण फिंगर अवस्था में अधिक होता है. यह कोशिकाओं में फिर​बीलेटिव कृमिकोष बना देते हैं. टिश्यू को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. ये रोग मछली के गलफड़ों और चमड़ों का संक्रमित करता है. उपचार और रोकथाम के लिए कोई औषधि कोई दवा नहीं है. इस बीमारी से ग्रसित मछली को बाहर निकाल देना चाहिए. बीमारी से बचाने के लिए मत्स्य बीज संचयन के पहले चूना, ब्लीचिंग पाउडर से पानी को रोग मुक्त किया जा सकता है.

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