Home पशुपालन Heatwave Tips: मई और जून की गर्मी में कैसे करें पशुओं की देखभाल, जानें
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Heatwave Tips: मई और जून की गर्मी में कैसे करें पशुओं की देखभाल, जानें

गर्मियों के मौसम में अधिक तापमान, लू, पीने के पानी तथा हरे चारे की कमी के कारण दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन कम हो जाता है.

नई दिल्ली. गर्मी एक ऐसा मौसम है, जब पशुओं को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गर्मी में उत्पादन पर भी बेहद ही खराब असर पड़ता है. गर्मी के कारण गाय या भैंस दूध का उत्पादन कम कर देती हैं. इसलिए पशुपालकों के लिए जरूरी होता है कि वो कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि गर्मी में पशुओं को होने वाली परेशानियों से बचाया जा सके. ऐसे में पशुओं के आवास की व्यवस्था करना बेहद ही अहम हो जाता है. यदि पशुओं के आवास की व्यवस्था ठीक हो तो फिर मेवशियों की परेशानियों को कम किया जा सकता है. गर्मी के कारण प्रजनन क्षमता भी कम हो जाती है और छोटे पशुओं के शरीर भार वृद्धि एवं विकास दर कम हो जाती है. ज्यादा गर्मी के खराब असर से पशु को बचाने के लिए कुछ विशेष प्रबन्ध करने चाहिए.

गर्मियों के मौसम में अधिक तापमान, लू, पीने के पानी तथा हरे चारे की कमी के कारण दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन कम हो जाता है. पशु आवास के चारों तरफ छायादार वृक्ष होने चाहिए ताकि गर्म हवा से पशुओं का बचाव हो सके.

ऐसे करें पशुओं की देखरेख

  • भीषण गर्मी और लू के कारण पशुओं में डीहाईड्रेशन (शरीर में पानी की कमी) होने का खतरा होता है. इसलिए पशुपालक पहले से ही ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट और फल्यूड्स आदि की व्यवस्था करके रखें.
  • इस मौसम में पशु बार-बार चौंकता रहता है. सांस तेजी से चलती है. आंखों की झिल्ली नीली पड़ जाती है. पशु में बेहोशी के दौरे शुरू हो जाते हैं। अनजाने में गोबर व पेशाब निकल जाता है, अंत में पशु की मृत्यु भी हो जाती है.
  • गर्मी के मौसम में कुपोषण के फलस्वरूप पशुओं की उत्पादक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. पशुओं की प्रजनन क्षमता में भी कमी आ जाती है. इसलिए पशुपालक समय-समय पर आयोजित किए जाने वाले बांझपन शिविरों पर अपने पशुओं की जांच अवश्य कराएं.
  • गर्मी में हल्की बारिश के बाद यदि सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न होती है तो गलघोंटू रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए पशुपालक इससे बचाव के लिए निकटतम पशुचिकित्सालय पर सरकारी फीस देकर टीकाकरण कराएं.
  • भीषण गर्मी के मौसम में परजीवी कीटाणुओं की समस्या बढ़ जाती है. इसलिए पशुपालक पशुचिकित्सक की सलाह के अनुसार पशुओं की डीवर्मिंग (पेट के कीड़ों की दवाई) अवश्य कराएं.
  • सूखे की स्थिति में हरे चारे में जहरीलेपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. चरी में हाइड्रोसाइनिक एसिड नाम का एक जहरीला पदार्थ उत्पन्न हो जाता है, जिसके खाने से 80 प्रतिशत तक पशु आकस्मिक मौत के शिकार हो जाते हैं. प्रभावित पशु सर्वप्रथम लड़खड़ाने लगता है और चक्कर खाकर गिर जाता है. दांतों के किरकिराने की आवाज आती है.
  • कई बार इन मौसम में पशुओं में खुरपका-मुहंपका रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए पशुपालक अपने निकटतम पशुचिकित्सालय पर जाकर अपने पशुओं को फ्री टीकाकरण अवश्य कराएं. पशुपालन विभाग द्वारा केन्द्रीय योजना के तहत पशुपालकों के द्वार पर जाकर निशुल्क टीकाकरण कराया जाता है.

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