नई दिल्ली. आमतौर पर मछली पालन तालाब और टैंक में किया जाता है लेकिन मछली पालन केज में भी किया जा सकता है और बहुत से किसान केज में मछली पालन करके लाखों की कमाई भी कर रहे हैं. झारखंड गेतलसूद डैम के अंदर केज के अंदर मछलियों को पाला जा रहा है. वैसे तो यह मछली पालन का एक नया है तरीका है हालांकि इसकी शुरुआत काफी पहले ही हो चुकी थी लेकिन इसका इस्तेमाल इस वक्त ज्यादा हो रहा है.
झारखंड के रांची में गेतलसूद डैम में पंगेसियस मछली और तिलापिया मछली का पालन केज में किया जा रहा है. आसपास के 16 गांव के लोग केज में मछली पालन कर रहे हैं. बता दें कि सभी मत्स्य पालन सहकारी समितियां के सदस्य हैं. यह सभी लोग मछली पालन जीआई पाइप या मॉड्यूलर पिंजरे का उपयोग करके मछली पालन कर रहे हैं. बताते चलें कि एक पिंजरे का औसत उत्पादन 3 से 4 टन होता है.
पंगेसियस और तिलापिया मछली पाली जा रही है
गौरतलब है कि साल 2012-13 में मछली पालन से जुड़ी नीली क्रांति आरकेवीवाई और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत इसकी शुरुआत की गई थी. इस डैम के पानी में 365 ऐसे पिंजरे तैयार किए गए हैं, जहां पर तिलापिया और पंगेसियस मछली का पालन किया जा रहा है. तिलापिया को मछली का चिकन भी कहा जाता है. क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है.
किसानों को मछली का मिल रहा है अच्छा रेट
यहां रखे गए 365 पिंजरे में तिलापिया और पंगेसियस प्रजाति की मछली के 25 लाख फिंगर साइज बीज छोड़े गए थे. इस डैम के पानी में मछली पालने वाले किसानों को पास में ही मछली बेचने के लिए भी बाजार मिल जाता है. जबकि उन्हें मछली के रेट भी अच्छे मिल रहे हैं. एक जानकारी के मुताबिक 120 किलो तक अपनी मछली किसान बेच जा पा रहे हैं. इसलिए डैम में किसान मछली पालन करना बेहद पसंद कर रहे हैं .
मछली पालन में बहुत है संभावनाएं
बताते चलें कि पिछले दिनों सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने पिंजरे में मछली पालने वाले किसानों से उनके मुद्दे और चुनौतियों पर भी बातचीत की थी. इस दौरान उन्होंने किसानों को बताया था कि मछली पालने में बहुत संभावनाएं हैं. उन्होंने जरूरी टिप्स भी दिया था. सचिन ने बताया था कि देश में अनुमानित 32 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल की जलाशय हैं. जहां पर मछली पालन किया जा सकता है लेकिन अभी इसका बहुत कम हिस्सा मछली पालन में इस्तेमाल किया जा रहा है.
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