नई दिल्ली. बकरी पालन रोजगार का बहुत ही बेहतरीन विकल्प है. सबसे अच्छी बात ये है कि कम पूंजी से शुरू होने वाला यह व्यवसाय, डेयरी फार्म की तुलना में कम जोखिम भरा व ज्यादा फायदा देने वाला है. एक्सपर्ट का कहना है कि आज की बढ़ती हुई महंगाई में जब गाय व भैंसों की कीमत व उनके पालने का खर्च बहुत अधिक है, बकरी पालन ग्रामीण बेरोजगारों के लिये रोजगार का एक अच्छा साधन है. बकरियों की अपनी कुछ विशेषताएं हैं. जैसे सीधा स्वभाव व छोटा आकार, रख रखाव में आसानी, अधिक बच्चे देने की क्षमता, किसी भी वातावरण के अनुरूप ढलने की क्षमता. इन वजहों से बकरी पालन बड़े पैमाने पर व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है.
ग्रामीण जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग जो गरीब है, बकरी के दूध का उपयोग करता है. जबकि इसका मीट भी हर धर्म के लोग खाते हैं. बकरी का दूध गाय व भैंस के दूध की तुलना में दूध से अधिक मिलता-जुलता है. इसका दूध आसानी से पचने वाला और इंसानों के शरीर के लिए बहुत अच्छा है. बच्चे, बुजुर्ग और बीमारी इंसान भैंस के दूध को आसानी से पचा नहीं पाते हैं. जबकि बकरी का दूध पीने से उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है. बकरी के दूध में वसा कणों का आकार छोटा होने के कारण यह आसानी से पच जाता है. इसके दूध में औसतन 4 प्रतिशत प्रोटीन होती है.
चरकर भर लेती है अपना पेट
खेती के साथ-साथ एक या एक से अधिक पशुधन रखने की परम्परा बहुत पुरानी है. बड़े व मध्यम किसान बड़े पशु पालने में रुचि रखते हैं, लेकिन भूमिहीन, सीमान्त व लघु किसान अधिकतर बकरी पालते हैं. इन सीमित संसाधनों वाले ग्रामीणों के जीवन जीने व खाद्य सुरक्षा में बकरी की भूमिका महत्वपूर्ण है. कम वर्षा व कम उपजाऊ जमीन में तुलनात्मक रूप से बकरी पालन करना अधिक फायदेमंद है. ऐसे क्षेत्रों में छोटी जोत वाले कृषकों, मजदूरों, गरीबों को बकरी पालन से रोजगार मिलता है. गरीब परिवार के बच्चे या औरतें बकरी के झुंड को लेकर सड़क व नहरों के किनारे या अन्य बेकार भूमि पर चराने ले जाते हैं. जिसमें किसी लागत की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
महिलाओं का रोल है अहम
पारंपरिक तौर पर बकरी पोषण के लिये पंचायती चरागाहों व अन्य सार्वजनिक चारा स्रोतों पर निर्भर करती है. चराने के साथ-साथ बकरियों को पेड़ों की पत्तियां भी खिलायी जाती हैं. बकरी से आमदनी का साधन दूध, उनके बच्चों की बिक्री व खाद आदि हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में किये गये सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ है कि बकरी पालन के कामों में महिलाओं का योगदान अधिक है. ग्रामीण इलाकों में बकरी को चराना, घास काट कर लाना, चारा डालना, पानी पिलाना, बाड़े की सफाई करना, ब्याते समय मदद करना आदि कामों में महिलाओं का ज्यादा रोल है.
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