नई दिल्ली. वर्मीवॉश एक तरल जैविक खाद है. ये केंचुओं द्वारा स्रावित हार्मोन, पोषक तत्वों एवं एंजाइमयुक्त होती है. इसमें बीमारी से लड़ने की क्वालिटी होती है और पोषक तत्व घुलनशील रूप में उपस्थित होते हैं और पौधों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. इसमें घुलनशील नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं. इसके अलावा इसमें हार्मोन जैसे ऑक्सीजन एवं साइटोकाइनिन, विटामिन, अमीनो अम्ल और विभिन्न एंजाइम जैसे-प्रोटीएज, एमाइलेज, यूरीएज एवं फॉस्फेटेज भी पाए जाते हैं.
एक्सपर्ट कहते हैं कि वर्मीवॉशका इस्तेमाल जिस तरह से सब्जियों को उगाने के लिए किया जाता है यदि पशु चारे के लिए भी किया जाए तो इसका भी फायदा मिलेगा. क्योंकि वर्मीवॉश को मइक्रोबॉयोलॉजिकल रिसर्च से पता चला है कि इसमें नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु जैसे-एजोटोबैक्टर प्रजाति, एग्रोबैक्टीरियम प्रजाति एवं फॉस्फोरस घोलक जीवाणु भी पाए जाते हैं. यह एक प्राकृतिक उर्वरक है. इसके प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि के अलावा मृदा की सेहत भी अच्छी हो जाती है. इसका कोई भी अवशेष मृदा के लिये नुकसान नहीं होता है.
कैसे तैयार करें वर्मीवॉश
अगर वर्मीवॉश को तैयार करने की विधि जानना चाहते हैं तो ये खबर आपके काम की है. सबसे पहले नल लगा हुआ प्लास्टिक का ड्रम (30-50 लीटर) लें और उसे एक स्टैण्ड पर रख दें. अब इसके बाद नल को खुला रखकर ड्रम में प्रथम 10-15 सें.मी. तक मिट्टी (छोटे-छोटे पत्थर) की परत भरें. इसके ऊपर दूसरे 10-15 सें.मी. तक बालू की मोटी परत डालें. इसके बाद सबसे ऊपर 30-40 सें.मी. तक गाय के आंशिक विघटित गोबर की एक परत चढ़ाएं. इसके ऊपर 2-3 सें.मी. तक मोटी नम मिट्टी की एक परत चढ़ाएं और इसमें 60-80 की संख्या में केंचुए डालें तथा इसे पुआल से ढक दें. फिर अब तैयार माल को छायादार जगह में रख दें और 10-15 दिनों तक पानी का हल्का छिड़काव करते रहें. 16-20 दिनों के पश्चात तरल वर्मीवॉश का उत्पादन शुरू हो जाता है. फिर इस तरह प्रत्येक सप्ताह 5-6 लीटर वर्मीवॉश हासिल होगा. जिसे नल के नीचे रखें किसी बर्तन में एकत्र कर लेते हैं.
वर्मीवॉश के क्या हैं फायदे
वर्मीवॉश तैया करने के बाद इसके बाद फायदे के बारे में आपको बताया जा रहा है क्योंकि अगर पशुपालक इसका इस्तेमाल पशु चारा उगाने में करेंगे तो इसका फायदा मिलना लाजिमी है. एक्सपर्ट के मुताबिक इसके प्रयोग से पौधे की अच्छी वृद्धि होती है. वहीं जल की लागत में कमी तथा अच्छी खेती होती है. इसके अंदर पर्यावरण को स्वस्थ बनाने की क्षमता होती है. कम लागत पर भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है. मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में वृद्धि करता है. इसके उपयोग से पौध रक्षक दवाइयां कम लगती हैं, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है. मृदा की जलग्रहण शक्ति में बढ़ोतरी होती है. इससे उत्पादित उत्पाद स्वादिष्ट भी होता है. इसके उपयोग से ऊर्जा की बचत होती है.
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