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Fisheries: मछली पालन के साथ बत्तख, मुर्गी और पशुपालन करना सही है या गलत, जानें यहां

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मछलियों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली पालन को बढ़ावा देने या फिर कहें कि मत्स्य विकास के लिए केंद्र ने विगत वर्षों में 25,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इसका उद्देश्य भारत में मात्स्यिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करना और मछलियों के उत्पादन को बढ़ावा देना है. मछली पालन क्षेत्र भारत में बहुत से लोगों का आजीविका का प्रमुख स्रोत है. इस क्षेत्र में विकास पोषण सुरक्षा, भारत की खाद्य सुरक्षा और देश में अतिरिक्त रोजगार सुनिश्चित कर रहा है. मत्स्य पालन की तकनीक अपना कर घर परिवार और राष्ट्र के स्वस्थ होने में हम योगदान दे सकते हैं. इसलिए भारत सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है.

मछली पालन करने के लिए नई-नई तकनी​क का इस्तेमाल किया जा रहा है. मछली पालन को किस तरह से फायदेमंद बनाया जा सकता है. इसको लेकर समय-समय पर संबंधित विभाग से गाइडलाइन भी जारी की जाती है. मछली पालन को और ज्यादा फायदेमंद बनाने लिए बत्तख और मुर्गी पालन भी साथ में किया जा सकता है. साथ में बत्तख पालन और मवेशियों को भी पालकर भी मछली पालन को और ज्यादा मुफीद बनाया जा सकता है. आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि मछली पालन के साथ क्या-क्या पाला जा सकता है और किस तरह.

मछली के साथ मुर्गी पालन
ऐसा करके मुर्गियों के अवशिष्ट को रिसाइकल कर खाद के रूप में उपयोग किया जाता है. एक मुर्गी के लिये 0.3-0.4 वर्ग मी. जगह की आवश्यकता होती है. 50-60 पक्षियों से एक टन उर्वरक हासिल होता है. 500-600 पक्षियों से हासिल खाद एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है. इस पालन द्वारा 4.5-5.0 टन मछली, 70000 अंडे और 1250 किग्रा मुर्गी के मांस का उत्पादन होता है. इसमें किसी पूरक आहार और अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है.

बत्तख पालन भी कर सकते हैं
इस पालन में मछली और बतख एक साथ पाती जाती है. जिस जल क्षेत्र में बतखों का पालन किया जाता है वह मछलियों के लिये आदर्श जलक्षेत्र होता है, क्योंकि इकोलॉजी बीमारी रहित होती है. बतख जल क्षेत्र में उपस्थित घोंघा, टैडपोल एवं पतंगों के तार्वा ग्रहण करती है. इसके अलावा बतखों के अवशिष्ट के सीधा तालाब में गिरने से मछलियों के लिये आवश्यक पोषक पदार्थ की पूर्ति होती है. प्रत्येक बतख से 40-50 किग्रा खाद प्राप्त होता है. जिससे लगभग 3 कि.ग्रा. मछली उत्पादन होता है. बतख की औसत पालन दर 4 बतख प्रति वर्ग मीटर होती है. एक बतख औसतन 200 अंडे प्रतिवर्ष देती है. बता दें कि खाकी कैम्पबेल बत्तख की बड़ी प्रजाति है मगर यह इर्द-गिर्द के फसलों को नुकसान पहुंचाती है और मछली की अंगुलिकाओं को भी घायल कर देती है. इसके बजाय इन्डियन रनर जो छोटी प्रजाति है पालने के लिये अधिक उपयुक्त है.

मछली पालन के लिए मवेशी पालन कैसे उपयोगी
मछली के साथ, गाय, बेल, भैंस तथा बकरी पालन किया जा सकता है. आमतौर एक गाय, बेल या भैंस से 6 कि.ग्रा. एवं बकरी से 0.5 कि.ग्रा. खाद प्राप्त होती है. इस तरह एक वर्ष में एक मवेशी से 9000 किलोग्राम अवशिष्ट निकलता है. एक अनुमान के मुताबिक 6.4 किग्रा गोबर से एक किग्रा मछती उत्पादन होता है. आठ गायों से प्राप्त गोबर एक हेक्टेयर जल क्षेत्र के लिये पर्याप्त होता है और इससे बिना पूरक आहार के 3-5 टन मछली का उपज ली जा सकती है. साथ ही दूध भी प्राप्त होता है.

मछली यह अनाज की खेती
इस तरह के पालन में मछली के साथ धान की खेती सर्वाधिक उपयुक्त होती है. धान का खेत पानी से भरा रहता है इसलिये इसमें धान के साथ कम खर्च में मछली पालन किया जाता है. धान की जलमग्न प्रजाति इसमें अपनायी जाती है.

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