नई दिल्ली. बटेर मुर्गी प्रजाति का ही एक पक्षी है और इसका भी पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है. जापान और ब्रिटेन में मांस और अंडे के लिए बहुत ज्यादा इसका पालन होता है. इस पक्षी का पालन को भारत में भी तेजी से लोग अपना रहे हैं. क्योंकि इसका आकार छोटा होता है और कम जगह में भी इसका पालन आसानी के साथ किया जा सकता है. इतना नहीं बटेर उत्पादन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि केवल 5 सप्ताह में ही यह तैयार हो जाती है. सात सप्ताह में अंडा देना शुरू कर देती है.
इसमें अंडे देने की भी काफी अधिक क्षमता होती है. एक बटेर साल में 280 अंडे तक दे देती है. इसकी तुलना में इसका मांस ज्यादा स्वादिष्ट माना जाता है. इसके अंडे शरीर और दिमाग में वृद्धि के लिए यह सहायक होते हैं. बटेर पालन में इनके चुजे का खास ध्यान भी रखना होता है. क्योंकि मृत्यु दर सबसे ज्यादा होती है. छोटे बच्चों में अधिक मृत्यु दर का कारण भूख भी माना जाता है. इसलिए की चीजों को खाना खिलाने और पानी पिलाने का विशेष ध्यान रखना होता है.
दूध और उबला अंडा देना चाहिए
जबरदस्ती खिलाने के लिए 15 दिन तक प्रति 1 लीटर पानी पर 100 एमएल की दर से दूध और 10 बच्चे पर एक उबला हुआ अंडा दिया जाना चाहिए. यह छोटे बच्चों की प्रोटीन की कमी को पूरा करता है. खाने के बर्तन को धीरे-धीरे उंगलियों से बच्चों को खाने की तरफ आकर्षित किया जाता है. इसके अलावा फीडर और पानी पिलाने वाले बर्तन में रंग-बिरंगे कांच या पत्थर रखने से फीडर के बच्चे आकर्षित होते हैं. इन्हें हरा रंग पसंद होता है. इसलिए इनके खाने की मात्रा बढ़ाने के लिए कुछ कटे हुए पत्ते भी मिला देना चाहिए.
किस तरह रखें चूजों का ख्याल
0 से 4 सप्ताह तक पक्षी 1.5 वर्ग फीट की जगह की जरूरत होती है. बच्चों के निकलने से 2 दिन पहले फीडर गृह को तैयार कर लेना चाहिए. नीचे बिछाए जाने वाली सामग्री को 2 मीटर के व्यास में गोलाकार रूप में फैलाया जाना चाहिए. छोटे चूजों को ताप के स्रोत से दूर जाने से देने रोकने के लिए एक फीट की दूरी पर ऊंची बाड़ अवश्य लगाई जानी चाहिए. तापमान 26 डिग्री फारेनहाइट रखा जाना चाहिए. इसके बाद चार सप्ताह तक प्रति सप्ताह तक 5 डिग्री फारेनहाइट तापमान में कमी की जाती है. पानी के लिए कम गहरे वाटरर का प्रयोग किया जाना चाहिए.
Leave a comment