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Poultry Farming: टर्की पालन में इन बातों का रखेंगे ख्याल तो कर सकेंगे अच्छी कमाई, पढ़ें डिटेल

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग के तहत ही टर्की पालन भी आता है. इसे भी पालकर कमाई की जा सकती है. अक्सर इसका पालन मीट के लिए किया जाता है. टर्की पालन के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद ही जरूरी होता है. मसलन उनके खानपान, लिंग निर्धारण, अंडे सेना और बीमारियों की रोकथाम पर. इन बातों का ख्याल रखेंगे तो फिर टर्की पालन में आपको ज्यादा फायदा मिलेगा. वहीं इन चीजों में लापरवाही होने पर नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. वहीं आखिरी इसकी मार्केटिंग भी जरूरी है. इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं सब चीजों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं.

एक्सपर्ट का कहना है कि टर्की को मुर्गी की तुलना में ज्यादा प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन्स, मिनरल की जरूरत होती है. मुर्गी को दिये जाने वाले फीड के अलावा प्रोटीन सोर्स मिलाकर भी टर्की को भोजन दिया जा सकता है. इन्हें हरी घास काट कर भी खाने के साथ दी जा सकती है. पीने के पानी की उचित व्यवस्था 24 घंटे उपलब्ध होनी चाहिये. हमेशा साफ पानी पीने के लिये देना चाहिये. मुर्गी पालन में काम आने वाले खाने पीने के उपकरणो को टर्की के लिये भी उपयोग किया जा सकता है आवश्यकता पड़ने पर इनमें कुछ बदलाव भी किया जा सकता है.

लिंग निर्धारण के लिए क्या करें
टर्की के लिये लिंग निर्धारण आसान नहीं होता है फिर भी कुछ तरीके लिंग निर्धारण के लिए काम में लिये जा सकते हैं. अंडे से बाहर निकलने पर चूजे में वेंट को देखकर. नर, मादा की तुलना में वजन में कुछ ज्यादा होता है चोंच के आधार के पास जो स्नूड होता है वह नर में ज्यादा बड़ा लचीला और गद्देदार होता है. जबकि मादा में यह छोटा, पतला एवं लचीला होता है.

अंडे सेने की प्रक्रिया
टर्की के लिए मुर्गी की तुलना में थोड़ा गरम वातावरण चाहिये. अंडे सेने के लिये ब्रूडर्स काम में लिए जा सकते हैं. ब्रूडर के लिए पहले सप्ताह में तापमान 95 डिग्री फारनेहाइट रखा जाता है. इनके बाद ब्रूडर का तापमान प्रति सप्ताह 5 फारनेहाइट तक कम किया जाता है जब तक कि यह 70 डिग्री फारनेहाइट तक नहीं पहुंच जाये.

बीमारियां को कैसे रोका जाए
टर्की पक्षियों में होने वाली अधिकतर बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक होता है. हालांकि कभी—कभी पानी नहीं पीने के कारण इनकी मौत होने लगती है, इनमें रानीखेत और फाउल कोलेरा के लिए ही टीकाकरण किया जाता है. आखिरी में बात आती है मार्केटिंग की. भारत में अभी टर्की के लिए स्थापित बाजार नहीं है फिर भी इसे विकसित किया जा सकता है. टर्की का औसत वजन 6-8 किग्रा होता है. 8 सप्ताह के बाद इसको बेचा जा सकता है.

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