Home पशुपालन Goat-Sheep Disease: इन उपायों को करें तो भेड़-बकरियों को नहीं होगा फुटरोट रोग, पढ़ें यहां
पशुपालन

Goat-Sheep Disease: इन उपायों को करें तो भेड़-बकरियों को नहीं होगा फुटरोट रोग, पढ़ें यहां

goat and sheep difference, Goat FarmingA Goat Farmer, CIRG, Hemocus, Parasite, Animal Husbandry
भेड़ और बकरी की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. अभी हिमाचल प्रदेश में बड़ी संख्या में फुटरोट बीमारी के कारण भेड़-बकरियों की मौत हुई है. बहुत से मवेशी बीमार है औंर उनकी जान खतरे में हैं. अन्य जगहों पर भी इस बीमारी के होने का अंदेशा है. बता दें कि बारिश मौसम और उसके जाने के दौरान भेड़-बकरियों में फुटरोट बीमारियों का खतरा बहुत रहता है. ये इतनी खतरनाक बीमारी है कि मे​वशियों की मौत भी हो जाती है. खुरपका बीमारी में मवेशियों के खुर में सड़न हो जाती है और उन्हें चलने-फिरने में भी दिक्कत आती है. यहां तक की भेड़ हो या फिर बकरी अगर इन जानवरों में ये बीमारी हो गई तो फिर वो खड़े भी नहीं हो पाते हैं. इसलिए चराई भी नहीं कर पाते हैं. खाने-पीने में दिक्कतें आती हैं और नतीजतन उनकी मौत भी हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते ही इसका इलाज कर लिया जाए.

एक्सपर्ट का कहना है कि इलाज से बेहतर बचाव है. अगर मवेशियों को बीमार ही न होने दिया जाए तो फिर उसके इलाज की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इसलिए हमेशा ही ये ध्यान में रखना चाहिए कि किस मौसम में पशुओं को कौन सी बीमारी होती है और इसकी वजह क्या है. जरूरत पड़ने पर एक्सपर्ट से भी इसको लेकर सवाल पूछे जा सकते हैं. इससे पशुओं को बीमारियों से बचाया जा सकता है. जबकि पशुपालक मवेशियों की मौत से खुद को होने वाले नुकसान से भी बचाव कर सकते हैं. यहां हम बात कर रहे हैं फुटरोट बीमारी की. ये भेड़ और बकरियों में होती है. इसे पैर की सड़न भी कहा जाता है. बता दें कि ये एक बैक्टीरियल संक्रमण है.

क्या है फुटरोट बीमारी के लक्षण
इस रोग के शुरुआती लक्षणों में पैरों के खुरों के बीच की त्वचा में सूजन आना शामिल है.
पीड़ित पशुओं के खुर उखड़ सकते हैं और वे खड़े नहीं हो पाते.
बीमारी होने के कारण संक्रमित क्षेत्रों पर कीड़े हमला कर सकते हैं.

कैसे करें रोकथाम
इस रोग को नियंत्रित करने के लिए, रोकथाम ही सबसे अहम उपाय है.
इस बीमारी से बचने के लिए, खुरों को साफ, सूखा, और कटा हुआ रखना चाहिए.
भेड़-बकरियों को बचाने के लिए, नियमित रूप से खुरों से मलबा साफ करते रहें.
इस बीमारी से बचाव के लिए साफ-सुथरे, अच्छी तरह से बिछाये गये बाड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए.
खुरपका रोग से बचाने के लिए ये उपाय भी कारगर है कि, खुरों को ट्रिम करना दें.
एंटीबायोटिक दवाओं के साथ व्यवस्थित उपचार करना चाहिए.
भेड़ और बकरियों को हर 5 से 7 दिनों में 10 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल में 15 मिनट तक खड़ा करना चाहिए.
पूरे झुंड के उपचार के लिए, जिंक या कॉपर सल्फेट के घोल से पैरों को धाना चाहिए.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

exotic cow breeds in india
पशुपालन

Animal Husbandry: कितना और कब खिलाना चाहिए यूरिया वाला चारा, बनाने का तरीका भी जानें

यूरिया घोल को पौधों में पानी देने वाले झारे से फैलाएं और...

livestock animal news
पशुपालन

Animal News: पशु को लग जाय ठंड तो घर पर बनी इस दवा की खिलाएं एक खुराक, तुरंत मिलेगा आराम

इसे अच्छी तरह से कूट लें और फिर बछड़े-बछड़ी वैसे ही खिला...

Foot-and-mouth disease, lameness disease, black quarter disease, strangulation disease, hemorrhagic septicemia, HS, live stock, live stock animals, animal husbandry, animal husbandry, animals sick in rain
पशुपालन

Animal Husbandry: चारे की कमी होने पर पशुओं को क्या-क्या खिलाया जा सकता है, इन 6 प्वाइंट्स में पढ़ें

गोखरू के पौधे हरी एवं मुलायम अवस्था बेहद पौष्टिक होती है. जिन...