नई दिल्ली. डेयरी कारोबार में बेहतर प्रोडक्शन के लिए पशुओं की मौसम के लिहाज से भी देखरेख करने की जरूरत पड़ती है. अगर बात की जाए अक्टूबर के महीने की तो इसमें कीड़ों का प्रकोप बहुत होता है. जिनके काटने से गौपशु तनाव में आ जाते हैं वहीं, उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है. इसलिए कीड़ों से बचाने की व्यवस्था करनी चाहिए. पशुओं को गीले स्थान पर कभी भी न रखें. सूखे स्थान पर रखना बेहतर होता है. पीने को साफ पानी देना चाहिए. जबकि इस महीने में पेट के कीड़े मारने की दवा दे सकते हैं. यह ध्यान रहे कि यह दवा हर 6 माह पर देनी है व गाभिन गायों में नहीं देना चाहिए. हरे चारे की व्यवस्था ठीक रखें. इस समय के हरे चारे से ‘साइलेज” या “हे” बना सकते हैं.
वहीं नवंबर और दिसंबर से ठंड शुरू हो जाती है. इसलिए गौपशुओं को ठंड से बचाने के उपाय करने चाहिए. साथ ही 10-10 दिन के गैप पर खुरपका-मुंहपका, गलघोटू तथा लंगड़ बुखार का टीका लगवाना चाहिए. पिछले महीनों में ब्यायी गायें यदि गर्मी में आ जाती है तो उन्हें गाभिन करायें. इस समय हरे चारे के साथ-साथ भूसे का भी प्रबन्ध करें. गौशाला की सफाई फिनाइल से कराकर चूने का छिड़काव करायें. बीमार गाय को अलग से रखने की व्यवस्था करें. पशु चिकित्सक की सलाह लें.
नवंबर-दिसंबर में जरूर करें ये काम
इस प्रकार यदि गौशाला का प्रबन्धन किया जायेगा तो गायों में बीमारियां भी कम होंगी व उनसे उत्पादन भी अधिक लिया जा सकेगा. सभी गौवंश का वर्ष में एक बार टीबी रोग, जोहनीज रोग व ब्रुसोलोसिस रोग के लिए टेस्ट करा लेना चाहिए. इसके लिए पास के पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें या भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर व राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों से सम्पर्क किया जा सकता है, जो फ्री या रियायती दर पर टेस्ट करते हैं. सांडों में तीन अन्य बीमारियों ट्राइकोमोनियोसिस, कैम्पाइलोबैक्टीरियोसिस तथा आईबीआर के लिए परीक्षण कराना चाहिए. यदि सांड इन बीमारियों में से किसी एक से भी ग्रसित मिलता है तो उसे प्रजनन में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस प्रकार गौवंश की देख रेख करने पर उनका स्वास्थ्य ठीक व उनमें मृत्यु दर काफी कम हो जायेगी व गौशाला भी लाभ में रहेगी.
जनवरी-फरवरी में क्या करना है जानें यहां
जनवरी, फरवरी में ठंड अधिक पड़ती है. इसलिए गौवंश को ठंड से बचायें. ज्यादा ठंड से गाय के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इसके लिए गौवंश को छायादार ढके स्थान पर रखें. रात में अलाव जला सकते हैं. या गौवंश के ऊपर कपड़ा/कम्बल डाल सकते हैं. गौवंश को विशेष रूप से छोटे बछड़े/बछड़ियों को और ज्यादा उम्र के गौवंश को भीगने से बचाएं. गौशाला में सीलन न होने दें. चारा व दाना पर्याप्त मात्रा में देते रहें. चारा-दाना पर्याप्त मिलते रहने से गौवंश के शरीर में ऊर्जा बनी रहती है. धूप निकलने पर गौवंश को कुछ समय धूप में अवश्य रहने दें. रात में गौशाला में खिड़कियों और दरवाजों को बोरों आदि से ढक दें ताकि ठंडी हवा का असर जानवरों पर न पड़े. यदि फिर भी गाय बीमार पड़ती है तो तुरन्त उपचार प्रारम्भ करें व चिकित्सक की सलाह लें.
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