नई दिल्ली. पशुपालन व्यवसाय में अगर आप भी कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो फिर ड्राई पीरियड में में पशुओं की अच्छे ढंग से करनी चाहिए. अगर बात की जाए गायों तो इसका लगभग 2 माह का ड्राई पीरियड होता है. यही वो दिन होते हैं जब पशु ब्यात के लिए भी तैयार होते हैं. पशु एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर लगातार दूध लिया जाए और ड्राई पीरियड का ख्याल न किया जाए तो फिर अगले ब्यात में दूध का उत्पादन पर असर पड़ता है और करीब 30 से 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है.
इसके अलावा पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इसके अलावा थनैला जैसी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा उत्पादन लागत भी भी बढ़ जाती है. यदि हम 45 दिन या इससे थोड़ा अधिक का ड्राई पीरियड रखें तो अयन की कोशिकाओं का रिसाइकल भी हो जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में शुष्क काल रखना बहुत ही जरूरी होता है. वहीं कम दूध देने वाले पशु ज्यादातर अपने आप ही सूख जाते हैं. ड्राई पीरियड के लिए आखिरी तिमाही अहम होती है.
चारा देने की मात्रा कम कर दें
एक्सपर्ट कहते हैं कि पशुपालकों को कृत्रिम गर्भाधान की तारीख नोट करके रखना चाहिए. इसके 9 महीने बाद का समय पशु के ब्याने का समय होता है. ब्याने के लगभग 2 महीने पहले सुखाने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए. सुखाने के लिए पशु को पानी देना कभी भी बंद नहीं करना बेहतर होता है. इसका पशु पर प्रतिकूल असर पड़ता है. पशुपालकों को धीरे धीरे हरा चारा एवं दाना कम करते जाना चाहिए. जबकि भूसे की मात्रा पहले जैसी ही रखनी चाहिए. दूध लेने की मात्रा को भी आखरी के 45 दिनों में धीरे धीरे कम करना चाहिए इसके साथ दूध दुहने की आवृत्ति भी कम करना बेहतर होता है.
थनों पर लगाना चाहिए दवा
ऐसा करने से लगभग 10 से 15 दिनों में पशु धीरे-धीरे सूख जाएगा. जब लगभग 200 से 250 ग्राम दूध आने लगे तब समझ लें कि पशु पूरी तरह सूख गया है. एक बार जब पशु सूख जाए तब दाना एवं खनिज मिश्रण थोड़ा बढ़ाया जा सकता है. यही वह समय है जब हम अपने पशुओं का अच्छे से ख्याल रख सकते हैं. ड्राई पीरियड में पशु के अयनों का रिवाइटलाइजेशन भी होता है. साथ ही साथ यदि पशु को पिछली ब्यात में थनैला हुआ हो तो उसके थनों में दवा लगानी चाहिए. ऐसा करने से आने वाली ब्यात में थनैला होने कि संभावना न के बराबर रहती है. बायो रेस्सिटेंट दवा थनों में डालने के बाद थनो की सीलिंग वाली दवा भी डालना चाहिए. साथ ही साथ थनों को लाल दवा के पानी से धोना बेहतर होता है.
अगली ब्यात के लिए तैयार करने का होता है सही वक्त
ड्राई पीरियड में थनैला के लिए प्रयोग की जाने वाली बायो रेस्सिटेंट दवाई सामान्य समय में प्रयोग की जाने वाली दवाई से अलग होती है. इनको एक बार ही इस्तेमाल करना है. इनका असर पूरे शुष्क काल में रहता है. ड्राई पीरियड में पशु के शरीर को अगली ब्यात के लिए तैयार करने भी सबसे सही वक्त होता है. अगर दूध देने वाले पशुओं को जरूरी ड्राई पीरियड दिया जाए तो अगली ब्यात में उत्पादन में कमी नहीं होती है. साथ ही साथ पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी हो जाती है. जबकि पशु फिर से दूध देने लगता है ऐसी स्थिति में शुष्कीकरण की प्रक्रिया को दोबारा किया जा सकता है.
दग्ध ज्वर से ऐसे बचाएं
एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक अगर पिछली ब्यात में पशु को दग्ध ज्वर हुआ हो तो शुष्क काल में खनिज मिश्रण की मात्रा को जरूर से कम करना बेहतर उपाय होता है. जबकि कैल्शियम देने से अगली ब्यात में दुग्ध ज्वर होने के चांसेज ज्यादा हो जाते हैं. पिछली ब्यात में अथवा इस समय भी यदि बच्चेदानी का प्रोलेप्स हुआ हो तो उसका इलाज भी इसी शुष्क काल में पशु चिकित्सक की सलाह से किया जाना चाहिए. जबकि शुष्क काल में पशुओं को पेट के कीड़ों की दवा भी देना बेहतर होता है. हालांकि ये देखना चाहिए कि ये दवा गाभिन पशुओं के लिए सुरक्षित हो. गायों में ड्राई पीरियड में कभी घाटे का सौदा नहीं होता क्योंकि एक तो इससे अयन को आराम मिलता है साथ ही साथ अगली ब्यात में थनैला आदि रोग होने की संभावना कम हो जाती है.
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