नई दिल्ली. जैसलमेरी भेड़ राजस्थान में पाई जाने वाली भेड़ में प्रमुख है. क्योंकि यह नस्ल जैसलमेर की है. इसलिए इसका नाम भी जैसलमेरी रखा गया है. इस नस्ल की भेड़ का पालन मुख्यता मांस के उत्पादन के लिए किया जाता है. पशुपालक इसके मीट को बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं. जबकि ऊन को भी बेचकर कमाई की जाती है. बता दें कि इस नस्ल की भेड़ जैसलमेर के अतिरिक्त जोधपुर में भी बहुत पाली जाती है.
ऊन सफेद रंग का होता है
जैसलमेर भेड़ का ऊन सफेद रंग का होता है. प्रथम प्रजनन की भेड़ नर की उम्र 15 से 18 महीने और मादा भेड़ के लिए 14 से 12 महीने बताया जाता है. मेमने का प्रतिशत लगभग 55 से 60 होता है. भेड़ का चयन उनके वजन के आधार पर किया जाता है और आमतौर पर झुंड के मालिकों द्वारा उनके प्रजनन कराया जाता है. कुछ मामलों में उनके अन्य मालिकों के साथ आदान-प्रदान भी किया जाता है. कतरनी एक वर्ष में तीन बार किया जाता है.
क्या है इस नस्ल की पहचान
अगर इस नस्ल के भेड़ के वजन की बात की जाए तो एक व्यस्क भेड़ का वजन 54 किलो और मादा का 34 किलो होता है. नर भेड़ के शरीर की औसत लंबाई 77 सेंटीमीटर होती है. जबकि मादा की 68 सेंटीमीटर होती है. नर की औसत ऊंचाई 72 सेंटीमीटर जबकि 68 सेंटीमीटर मादा की होती है. औसत छाती का घेरा 95 सेंटीमीटर का होता है और मादा का 82 सेंटीमीटर का होता है. इनका चेहरा काला या गहरा भूरा होता है और रंग गर्दन और विशिष्ट रोमन नाक तक फैला होता है. आम तौर पर कार्टिलाजिनस उपांग के साथ लंबे झुके हुए कान देखे जाते हैं.
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