नई दिल्ली. कर्नाटका की सिद्धारमैया सरकार ने अस्पतालों में मरीजों को परोसे जाने वाले पोषण से भरपूर खाने में अंडों की जगह सोया चंक्स को रखने का फैसला किया है. जिसके बाद अंडों को बढ़ावा देने वाले लोग सरकार के इस फैसले के खिलाफ उतर आए हैं. वहीं पोल्ट्री व्यापार से जुड़े लोगों ने भी कड़ा एतराज जताया है. तर्क दिया जारहा है कि सोया कई प्रक्रियाओं से नहीं गुजरता, यह आमतौर पर पचाने के लिए एक मुश्किल खाद्य पदार्थ होता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा हो सकती है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा बायो अवेलबल नहीं होता है और निश्चित रूप से यह पशु स्रोत वाले खाद्य पदार्थों जितना पौष्टिक नहीं है.
एक्सपर्ट का कहना है कि चाहे वो बुजुर्ग नागरिक हों, स्तनपान कराने वाली माताएं हों. सभी के लिए अंडा अच्छा है. उन्हें बेहतर प्रतिरक्षा और ऊतकों के पुनर्जनन की क्षमता की आवश्यकता है. इसलिए अंडों के अंदर मौजूद प्रोटीन बीमार और ठीक हो रहे मरीजों के लिए लाभदायक होते हैं.
क्यों लिया ये फैसला
गौरतलब है कि पिछले दिनों कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री, दिनेश गुंडू राव ने बेंगलुरु के तीन सार्वजनिक अस्पतालों में मरीजों को ‘पोषणीय’ भोजन देने के लिए नौ महीने का पायलट कार्यक्रम घोषित किया था.
इनमें अंडे को शामिल नहीं किया गया था. असल में खाना परोसने वाली इस्कॉन (अंतर्राष्ट्रीय कृष्णा सचेतना संगठन), एक हिंदू धार्मिक संगठन है.
इस संगठन की हरि कृष्णा फूड फॉर लाइफ (FFL) कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा शाकाहारी भोजन वितरण पहल है, जिसके 60 से अधिक देशों में परियोजनाएं हैं.
ये संस्था देशभर के लगभग 23 हजार 978 स्कूलों सरकारी मदद से एमडीएम परोसती है लेकिन खाना शाकाहारी होता है.
गौरतलब ळळै कि कई लोगों का मानना है कि अंडा मांसाहारी होता है. जबकि पोल्ट्री एक्सपर्ट भी अंडे शाकाहारी मानते हैं.
वहीं सरकार ने विशिष्ट पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, सरकार ने सामान्य, चिकित्सा, गर्भावस्था, प्रसव के बाद की महिलाओं और बाल चिकित्सा मरीजों के लिए अलग आहार योजनाएँ लागू की हैं. बता दें कि मध्य प्रदेश ने 2021 में अंडों को दूध से बदल दिया था.
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