नई दिल्ली. देश की ग्रामीण महिलायें गृहस्थी के कार्यों के अलावा पैसा कमाने के कार्य करने में भी समर्थ हैं. तथा लगातार पशुपालन, कृषि व मजदूरी जैसे कार्यों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती आयी हैं लेकिन उन्हें इसकी अहसास नहीं है जिस कारण ग्रामीण महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं हो पाता है. वहीं उनका सामाजिक स्तर निचले स्तर का रहता है. इन परिस्थितियों से उभरने के लिये ग्रामीण महिलाओं को मार्गदर्शन, उत्साह व साधन की जरूरत है. बकरी पालन अनपढ़ व कमजोर ग्रामीण महिलाओं के लिये पैसा का एक अच्छा माध्यम है जिसे वह कम पूंजी लगाकर अपनी घर गृहस्थी के कार्यों के साथ भी आसानी से कर सकती हैं.
इस प्रकार ग्रामीण महिलाओं को बकरी पालन द्वारा आत्मनिर्भर बनाकर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है. पांच से दस बकरियों को घर पर ही भूसा, खाने पीने के अवशेष जैसे रोटी, आटे की भूसी, पेड़ की पत्तियां व सार्वजनिक स्थलों पर घास चराकर आसानी से पाला जा सकता है. इसी मकसद के साथ, संस्थान के पशु आनुवंशिकी व प्रजनन विभाग में चल रही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की परियोजना ‘लाइवली हुड सीक्योरिटी फौर रूरल वुमेन भ्रू साइंटिफिक गोट फार्मिंग’ के अंतर्गत फरह ब्लाक के दो गांव नगला चंद्रभान व बर का नगला की समस्त बकरी पालक महिलाओं को बकरी पालन प्रबंधन में सुधार, मार्गदर्शन एवं सहायता करने के लिए शामिल किया गया.
बकरी प्रबंधन निलचे स्तर है
इन महिलाओं की बकरियों के उपचार, रोकथाम एवं टीकाकरण के लिए चार स्वास्थ्य शिविर लगाये गये. इन दोनों गांवों में बकरी पालन एवं प्रबंधन निचले स्तर का पाया गया है. बकरियों की चिकित्सा एवं टीकाकरण की महत्ता भी कम देखी गयी जिस कारण यहां मृत्यु दर भी उच्च 10-15 प्रतिशत पायी गयी. इस क्षेत्र की बकरियों में दस्त, अफरा, जूँ (टिक्स), पेट के कीड़े, मोहा मनाली बघेल व साकेत भूषण (कोटेजियस एक्थाइमा), चारा न खाना (एनोरेक्सिया), बुखार, खांसी, जुकाम जैसे रोग आमतौर पर पाये गये.
बकरियों को लगाई गई वैक्सीन
वहीं पिछले एक वर्ष में नियमित रूप से इस क्षेत्र में जाकर इन रोगों के उपचार व रोकथाम हेतु उपयुक्त दवाइयां आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर महिला किसानों को प्रदान कीं. इसके साथ ही यहां चार स्वास्थ्य शिविर लगाकर तीन माह व उससे ऊपर की 171 बकरियों में घातक रोगों जैसे बकरी प्लेग (पी.पी.आर.) का टीका लगवाया तथा तीन माह व उससे ऊपर की 145 बकरियों में आंत्र विषाक्तता/ इन्टेरोटाक्सीमिया (ई.टी.) का टीका एवं 145 बकरियों में ई.टी. का बूस्टर टीका लगवाया.
महिलाएं आने लगीं आगे
इन स्वास्थ्य शिविर के दौरान बकरियों में विभिन्न रोगों के लिये आवश्यक दवाइयाँ देकर महिला किसानों की आर्थिक रूप से सहायता की तथा बकरियों के स्वास्थ्य व चिकित्सा से सम्बंधित उनके ज्ञान एवं जागरूकता में बढ़ोत्तरी हुई. इस प्रकार बकरियों की मृत्यु दर में पिछले एक वर्ष में पहले से काफी सुधार (10.07 प्रतिशत से घटकर 7.82 प्रतिशत) आया. जिससे किसान महिलाओं ने बकरी पालन द्वारा अपनी अतिरिक्त आय में वृद्धि कर अपने परिवार की आय में योगदान किया है और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हुई हैं.
Leave a comment