नई दिल्ली. मछली पालन भी एक बहुत ही फायदे वाला कारोबार है. हालांकि किसी भी काम को करने से पहले उसके लिए प्लानिंग करना बहुत ही जरूरी होता है. अगर अच्छी प्लानिंग से काम न किया गया तो फिर ज्यादा फायदा नहीं होता है. कई बार तो नुकसान भी उठाना पड़ जाता है. अगर आप मछली पालन करना चाहते हैं और आपको अनुभव भी नहीं है तो इस खबर से आपको मदद मिल सकती है. आपको पता चल जाएगा कि मछली पालन करने से पहले क्या-क्या व्यवस्थाएं करनी चाहिए.
अगर एक बार आपने इन व्यवस्थाओं को कर लिया तो फिर मछली पालन कर सकते हैं और इससे आपको फायदा भी होगा. बुनियादी तौर पर मछली पालन के लिए तालाब की जरूरत होती है. तालाब कितना गहरा होना चाहिए इसकी जानकारी होना जरूरी है. कई बार मछलियों को बीमारी से बचाने के लिए चूने का छिड़काव किया जाता है. इसके अलावा मत्स्य संचयन भी अहम होता है. आइए इन प्वाइंट्स के बारे में जानते हैं.
मछलीपालन के लिए तालाब का चयन
एक्सपर्ट कहते हैं कि मछली पालन के लिए तालाब का चयन सबसे अहम है. तालाब बारहमासी कम से कम 2 मीटर गहरे तथा ताल में पानी भरने के लिए जलश्रोत हो, एसे तालाब का चयन करना चाहिए. इसमें जलीय वनस्पति का उन्मूलन तालाब से जलीय वनस्पति को निकलवा देना चाहिए. नहीं तो इसका नुकसान मछलियों को होता है. अनचाही एवं मांसभक्षी मछलियों को मत्स्यबीज संचयन के पूर्व तालाब से निकलवा देना चाहिए. इन्हें निकालने हेतु बार-बार जाल चलाकर निकाल सकते हैं, इन्हें निकालने हेतु 2500 किलो ग्राम प्रति हेक्टर महुआ खली का उपयोग किया जा सकता है.
चूने का प्रयोग कब करना है
मछली पालन में चूने का भी बहुत अहम रोल है. एक हेक्टर जलक्षेत्र में 250-350 किलोग्राम चूना डालना चाहिए. तालाबों को चूना डालने की मेन वजह पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाना है. इसके अलावा इसके डालने से पीएच भी बढ़ाया जाता है. दैनिक पीएच उतार-चढ़ाव के खिलाफ बफर बनाना और स्टॉकिंग से पहले तालाबों को कीटाणुरहित करना भी चूने का काम होता है. एक्सपर्ट की मानें तो चूने का इस्तेमाल करना तालाब में जरूरी होता है. क्येांकि ये खाद का भी काम करता है. इसके इस्तेमाल से मिट्टी में पोषक तत्व पानी में उपलब्ध हो जाते हैं. हैं. चूने को बुझाकर पानी में घोल कर तालाब में इनका छिड़काव किया जाता है.
मत्स्य बीज संचयन की जरूरत
मछली सह मुर्गीपालन के लिए तालाब में प्रति हेक्टर 5000 अंगुलिकाएं प्रति हेक्टर की दर से संचय करना चाहिए. समय-समय पर प्रतिमाह जाल चलाकर इनकी वृद्धि एवं बीमारी का पता लगाते रहें। बीमारी की जानकारी होने की दषा में उचित उपचार करें. एक हेक्टर जलक्षेत्र के पोखर से प्रतिवर्ष 2500 से 3000 किलोग्राम मत्स्य उत्पादन लिया जा सकता है.
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