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Goat Farming: जानें क्या है ब्रॉयलर बकरी पालन, कैसे है ये गरीब किसानों के लिए फायदेमंद

goat farming for milk
बरबरी बकरी की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली.घर के पीछे अहाते में बकरी, चूजे या मवेशी पालने की प्रथा बहुत पुरानी है. गांव के लोग अपनी रोमर्जा की जरूरत पूरा करने के लिए इसपर बहुत अधिक निर्भर रहते थे. घटती चरागाह भूमि और हरे चारे की कमी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में मवेशी पालन – विशेषकर बकरी पालन, जो कि छोटे घरेलू स्तर पर किया जाता है बहुत ज्यादा मुश्किल हो गया. घटती चारागाह भूमि और हरे चारे की कमी प्रमुख समस्याएं हैं जो कई किसानों को मवेशियों, विशेषकर बकरियों को पालने से दूर रखती हैं. बता दें कि देशभर में घर के अहाते में बकरियों को पालने की प्रथा अब इसलिए खत्म होती चली गई कि ये कम फायदेमेंद और महंगी हो गई.

रिसर्च के जरिए से समय पर प्रयासों और किसान अनुकूल प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाते हुए, और कृषक समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए आईआईएसआर के वैज्ञानिकों ने एक बड़ा योगदान दिया. आईआईएसआर के पेरुवन्नामुझी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ‘ब्रॉयलर बकरी पालन’ कृषक समुदाय के लिए एक वरदान है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हरे चारे की कमी है.

हर तरह से है फायदेमंद
बता दें कि काफी गहन अध्ययन के बाद, वैज्ञानिकों ने ब्रॉयलर शिशु पालन नामक एक नई तकनीक को डेवलप किया है. जहां शेड में पाले गए बकरी के बच्चों का वजन बेहतर होता है और वे किसानों को ज्यादा फायदा पहुंचता है. इससे भूमिहीन मजदूरों और छोटे किसानों को सीधे फायदा होता है. आईआईएसआर, कोझिकोड के निदेशक डॉ. एम. आनंदराज कहते हैं कि ब्रॉयलर पालन की विधि अपने आप में अनूठी है. यह उचित योजना और प्रजनन के माध्यम से मादा बकरियों की उच्च प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है. जिससे हासिल होने वाले मेमने की गुणवत्ता बनी रहती है. साथ ही हरे चारे की कमी से निपटने के लिए एक वैज्ञानिक और कम लागत वाली आहार प्रक्रिया विकसित की गई है.

कैसे किया जाता है पालन
उन्होंने बताया कि जहां तक ​​ब्रॉयलर बकरी पालन का सवाल है, इस उद्देश्य के लिए कोई विशिष्ट नस्ल नहीं है. इस विधि के माध्यम से किसी भी स्थानीय नस्ल के बच्चों (नर और मादा दोनों) का चयन करके उसका पालन किया जा सकता है. इस विधि के जरिए हरी पत्तियां खाना शुरू करने से पहले 15 से 30 दिन के अधिक वजन वाले बच्चों का चयन किया जाता है. एक बार पहचाने जाने के बाद इन बच्चों को उनकी मां से दूर रखा जाता है और बांस या लकड़ी के खंभों से बने शेड में अलग रखा जाता है. हर समय उचित वेंटिलेशन, धूप और सफाई सुनिश्चित की जाती है.

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