नई दिल्ली. हम इंसान जिन भोजन को इस्तेमाल करते हैं उसमें मछली का बड़ा हिस्सा है. एक आंकड़े मुताबिक भारत की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी मछली खाना पसंद करती है. किसी न किसी मौके पर लोग मछली का सेवन जरूर करते हैं. दरअसल, मछली में का सेवन करना सेहत के लिए बहुत ही मुफीद माना जाता है. मछली के अंदर 17 फीसदी प्रोटीन होता है. जो इंसानों की बॉडी के लिए जरूरी है. अगर किसी का वजन 70 किलो है तो उसे 70 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है. ऐसे में मछली बेहतर आप्शन है.
न्यूट्रीशियन कहते हें कि मछली से बने प्रोडक्ट में माइक्रो न्यूट्रिंस और जरूरी फैटी एसिड भी होता है. मछली का होम फूड और न्यूट्रीशियन सेफ्टी में योगदान इसकी उपलब्धता और व्यक्तिगत पसंदों पर निर्भर करता है. गौरतलब है कि एफएओ-डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ परामर्श समूह ने इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सामान्य आबादी के लिए, मछली का सेवन व्यक्तिगत वृद्धि और विकास के लिए फायदेमंद है.
दिल की बीमारी के लिए बेहतर
इतना ही नहीं जबकि मछली की एक निश्चित मात्रा विशेष रूप से वसायुक्त मछलियां का सेवन करने से एक बड़ा फायदा और भी है. इससे हृदय सम्बंधित रोगों को रोकने में मदद मिलती है. विश्वस्तर पर मछली और मछली उत्पादों का व्यापक रूप से सेवन किया जाता है क्योंकि यह अपने उच्च प्रोटीन, जरूरी फैटी एसिड, विशेष रूप से ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन और खनिज के कारण एक अच्छा पोषण स्रोत है. मछली पकड़ने के बाद अगर सही तरीके से संरक्षण नहीं किया गया है, तो उसकी जैविक और रासायनिक प्रकृति खराब हो जाती है. हालांकि मछली को खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान देना जरूरी होता है.
फ्रेश मछली ही है फायदेमंद
एक्सपर्ट कहते हैं कि अक्सर मछली जल्दी खराब हो जाती है और इससे उसकी गुणवत्ता में गिरावट होती है. ऐसे में मछली फायदा पहुंचाने की जगह नुकसान पहुंचा सकती है. दरअसल, मछली में प्रोटीन, अमीनो एसिड और वसा जैसे जैव अणुओं का टूटना मछली के खराब होने के लिए जिम्मेदार कारक है. केमिकल टूटने में प्रोटीन, वसा, अमीनो एसिड आदि माइक्रो ऑर्गेनिज्म के कारण डिसिंग्रेट हो रहे हैं. बैक्टीरिया और रासायनिक टूट के अलावा एंजाइमैटिक और मैकेनिकल नुकसान भी मछली के खराब होने का कारण बन सकती है. वहीं ज्यादा नमी, प्रोटीन और वसा की मात्रा, अनुचित रख-रखाव आदि जैसे कुछ कारक हैं, जो मछली के सड़ने का कारण बनते हैं.
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