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Animal Husbandry: इस तरह का चारा खिलाने से पशु रहेंगे बीमारी से दूर, मिलेगा भरपूर पोषक तत्व

अप्रैल महीने में भैंसे हीट में आती हैं और यह मौसम उनके गर्भाधान के लिए सही है. लेकिन इस बार अप्रैल के महीने में गर्मी अधिक है. ऐसे में गर्भाधान में प्रॉब्लम आ सकती है.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. क्या आपको पता है कि जलवायु परिवर्तन का असर पशुओं की हैल्थ पर पड़ रहा है. जी हां, इससे पशुओं के चारागाह कम हो रहे हैं. तालाब अन्य पानी के विकल्प की हालत भी बेहतर नहीं है. पानी गंदे हैं. गंदा पानी पीने की वजह से भी पशु बीमार हो रहे हैं. ऐसे में पशुओं के हैल्थ के लिए बीमारियों से रोकने वाला और पोषक तत्वों से भरपूर चारा देने की जरूरत है. केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान सीआईआरबी, भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान आईजीएफआरआई झांसी और रिलायंस मिलकर न्यूट्रिशंस से भरपूर फोडर पर काम कर रही है. ताकि पशुओं को बेहतर चारा उपलब्ध कराया जा सके.

बताया जा रहा है कि इसके लिए रिलायंस की ओर से 100 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट भी दिया है. इसकी जानकारी भारतीय कृषि वैज्ञानिक इक्विपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार ने दी है. उन्होंने ये जानकारी सीआईआरबी के 41वें स्थापना दिवस कार्यक्रम से पहले मीडिया कर्मियों से बातचीत के दौरान दी है. उन्होंने कहा कि गाय व भैंस को मक्का और मोटे अनाज जैसे बाजार, जौ और इसके अलावा रोगों से लड़ने वाला पोषक तत्वों से भरपूर चारा दिया जा जाना चाहिए.

इस फोडर से मीथेन गैस हुई है कम
भैंस अनुसंधान केंद्र पहले ही एक फोडर विकसित किया है. जिससे भैंस व गाय के खाने के बाद मीथेन गैस का उत्सर्जन भी 30 फीसदी तक कम हुआ है. हालांकि आईजीएफआरआई झांसी के साथ अभी यह प्रोजेक्ट शुरुआती दौर में है. एक्सपर्ट ने बताया कि उपयोगी चारा कम होने से खेतों की ज्योत कटने से अब किसानों को हाइड्रोपोनिक और वर्टिकल फार्मिंग जैसी तकनीक पर जाना होगा. एक्सपर्ट का कहना है कि इस तकनीक का फायदा ये है कि इसके जरिए कम एरिया में ज्यादा चारा लिया जा सकता है. दूध अभी हाथों से निकाला जाता है. ऐसे में ये विकसित भारत के लिए सही नहीं है. विकसित भारत में मशीनों का इस्तेमाल पशुपालन में बढ़ाने की जरूरत है.

बढ़ाया गया है मुर्रा भैंस का दूध उत्पादन
एक्सपर्ट ने माना कि ब्लाकचेन टेक्नोलॉजी जैसी तकनीक की जरूरत पशुपालन में है. जिससे ये पता लगाया जा सके कि पनीर तैयार करने में किसी तरह के दूध का इस्तेमाल किया गया है. इससे ये चीज आसानी के साथ टेस्ट भी किया जा सकता है. आपको बता दें कि वेस्ट बंगाल एनिमल व फिशरीज साइंस के वीसी और सीआईआरबी के पूर्व डायरेक्टर डॉ. धीरज कुमार दत्ता ने बताया कि मुर्रा के औसत दूध उत्पादन के प्रति ब्यात में 1800 से 5000 लीटर तक पहुंचाया गया है. संस्थान ने बीते साल ढाई लाख से ज्यादा सीमेन के डोज का उत्पादन किया है.

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