नई दिल्ली. पशुओं को होने वाले खतरनाक लंपी रोग से बचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. इसकी कड़ी में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली में एक अहम बैठक का आयोजन किया गया. जहां लंपी रोग से बचाने वाली प्रो वैक वैक्सीन को जल्द से जल्द उपलब्ध कराने को लेकर चर्चा हुई. ये साफ हो गया कि जल्द ही ये वैक्सीन पशुओं को कुछ परीक्षण के बाद लगाई जाने लगेगी. वहीं तब तक मौजूद वैक्सीन से वैक्सीनेशन करने को लेकर प्लान पर भी चर्चा हुई. बैठक का आयोजन रविन्द्र, प्रमुख सचिव, दुग्ध विकास पशुधन एवं मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में किया गया था.
बैठक में आईवीआरआई के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त सहित उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के निदेशकों तथा संयुक्त निदेशकों ने भाग लिया. प्रमुख सचिव रविन्द्र ने लंपी स्किन बीमारी के बारे में संस्थान के निदेशकों तथा वैज्ञानिकों से विस्तार में चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रदेश में 1.9 करोड़ पशुओं की संख्या है तथा इनके बचाव हेतु प्रदेश के किन-किन क्षेत्रों में सर्वप्रथम टीकाकरण किया जाए. इसके अतिरिक्त उन्होंने संस्थान से आईवीआरआई द्वारा विकसित लम्पी प्रो वैक वैक्सीन की बाजार में उपलब्धता के बारे में प्रश्न किया.
दो से 12 महीने का समय
प्रमुख सचिव द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर में संस्थान के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त तथा राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. नवीन कुमार ने बताया कि लम्पी स्किन बीमारी से बचाव के लिए सर्वप्रथम नेपाल से सटे गांव से टीकाकरण शुरू किया जाए. इसके अलावा लंपी प्रो वैक वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में संस्थान निदेशक ने बताया कि इस पर अभी फील्ड परीक्षण चल रहा है. तथा इसकी उपलब्धता होने में अभी दो से 12 महीने तक का समय लग सकता है. संस्थान ने सुझाव दिया कि तब तक वर्तमान में चल रही गोट पाक्स वैक्सीन के इस्तेमाल को जारी रखा जा सकता है.
88 तकनीक की है विकसित
संस्थांन के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने बताया कि संस्थान द्वारा पशुओं की प्रमुख चार बीमारियों जिनमें रिण्डरपेस्ट, डाउरीन, सीपीबीपी, अफ्रीकन हार्स सिकनेस बीमारियों का उन्मूलन किया जा चुका है. संस्थान ने 88 तकनीक विकसित की हैं. जिसमें से 46 तकनीकों को 159 वाणिज्यक घरानों को हस्तांतरित किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त संस्थान ने दो पशुओं की दो प्रजाति वृंदावनी तथा लैण्डरस को विकसित किया है तथा रूहेलखण्डी बकरी तथा सूकर की घुर्रा प्रजाति को पंजीकृत किया है. संस्थान ने 64 आईसीटी टूल्स विकसित किये हैं. जिनका प्रयोग 134 देशों में हो रहा है. उन्होंने इस अवसर पर संस्थान के सम विश्वविद्यालय द्वारा चलाये जा रहे पाठ्यक्रमों के बारे में भी चर्चा की.
लंपी रोग को लेकर प्रेजेंटेशन दिया
संस्थान के प्रभारी पी.एम.ई. सैल, डा. जी. साई कुमार द्वारा पशुओं की लम्पी बीमारी तथा वर्तमान स्थिाति तथा निदान के बारे में विस्तृत प्रस्तुतिकरण किया गया. लंपी बीमारी के बारे में महत्वपूर्ण बैठक तथा दिये गये सुझावों को प्रमुख सचिव श्री रविन्द्र ने सराहना की तथा संस्थान से भविष्य में सहयोग की अपेक्षा भी की. उन्होंने इस बैठक को आयोजित करने के लिए आयोजकों का धन्यवाद किया. कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन कैडराड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. गौरव शर्मा द्वारा किया गया इस अवसर पर संस्थान के संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक डा. एस.के. मेंदीरत्ता, संयुक्त निदेशक, प्रसार शिक्षा, डा. रूपसी तिवारी सहित, उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के डा. मनोज अग्रवाल अपर निदेशक-द्वितीय, डा. पी.एन.सिंह, निदेशक रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र, डा. गोपेश श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे.
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