Home मीट Buffalo Meat: मीट प्रोडक्शन में आती हैं ये समस्याएं, पशुपालकों को होता है सीधे तौर पर नुकसान
मीट

Buffalo Meat: मीट प्रोडक्शन में आती हैं ये समस्याएं, पशुपालकों को होता है सीधे तौर पर नुकसान

buffalo meat benefits
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मोटे तौर पर देश में भैंस-बकरी और ब्रॉयलर चिकन के मीट खाया ज्यादा है. अब बात की जाए बफैलो मीट तो अभी भी घरेलू बाजार में कई ऐसी समस्याएं जिनकी वजह से बफैलो मीट का किसानों को उतना फायदा नहीं मिल पाता है जितना मिलना चाहिए. न ही मीट का न ही बाई प्रोडक्ट का. इसमें बिचौलियों का रोल ज्यादा है जो किसानों के मुनाफे को चट कर जाते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर कुछ समस्याएं हैं, जिनको खत्म किया जाए तो इससे बफैलो मीट का प्रोडक्शन भी बढ़ जाएगा और किसानों का फायदा भी.

बता दें कि देश में बड़ी मात्रा में बफैलो मीट का प्रोडक्शन होता है. जबकि इसे एक्सपोर्ट भी किया जाता है. खासकर अरब देशों में भारत के बफैलो मीट की ज्यादा डिमांड रहती है. वहां पैक्ड बफैलो मीट बिकता है. जबकि देश के कई बड़े शहरों में भी अब पैक्ड मीट का चलन तेजी से बढ़ रहा है. इससे पशुपालकों को भी फायदा हो रहा है.

पशुपालन और मांस आपूर्ति क्या हैं समस्याएं
पशुपालन और मांस आपूर्ति की समस्याओं की बात की जाए तो मांस आपूर्ति श्रृंखला, जिसमें पशुओं की बिक्री, खाद्य जानवरों की कटिंग और थोक व खुदरा आउटलेट के लिए मांस के शवों की बिक्री शामिल है. दिक्कत ये है कि ये चीजें भारत में अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं है. जिससे पशुपालकों को फायदा नहीं मिल पाता है. बिचौलिए बाजार में उस स्थान पर काम करते हैं, जहां व्यावसायिक हित गहराई से जुड़े होते हैं, जो अधिकांश मामलों में ग्राहक से वसूले गए कुल मूल्य का बड़ा हिस्सा अपने खाते में ले जाते हैं. जिसका सीधा नुकसान पशुपालकों को होता है.

पशुपालकों को होता है 50 फीसदी का नुकसान
मीट प्रोडक्शन पर करीब से नजर रखने वाले एक्सपर्ट का कहना है कि चार या पांच प्रकार के बिचौलिए किसानों और उत्पादकों (ग्रामीण क्षेत्रों में) और शहरी स्लाटर हाउस, मांस विक्रेताओं और मांस की दुकानों के मालिकों के बीच हस्तक्षेप करते हैं. लंबे बिक्री चैनल और जीवित जानवरों की बिक्री में कई बिचौलियों की भागीदारी के कारण, पशुपालक मांस और अन्य सह-उत्पादों का कुल मूल्य का केवल 40-45 फीसदी ही हासिल कर पाते हैं.

ये भी समस्याएं हैं प्रमुख
भारत में पशुधन और मांस मार्केटिंग में समस्याएं पैदा करने वाले प्रमुख कारकों में पशुधन बाजारों, बूचड़खानों में सीमित आधारभूत संरचना सुविधाएं, मांस की अत्यधिक नाशवान प्रकृति, धार्मिक कारण, क्षेत्रीय कृषि-जलवायु स्थितियों में व्यापक विविधता, अपर्याप्त ठंडी भंडारण सुविधाएं और रेफ्रिजरेटेड डिलीवरी वैन, मांस की कीमतों में मौसमी उतार-चढ़ाव, ग्रेडिंग प्रणाली की कमी और शेयरधारकों की समग्र आर्थिक स्थिति का खराब होना शामिल हैं.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

मीट

Meat Production: पैक मीट के पैकेट पर लेबलिंग पर देनी होती है ये जानकारियां, जानें यहां

लेबल पर जरूरी घोषणा की डिटेल अंग्रेजी या हिंदी (देवनागरी लिपि) में...

मीट

Meat: इस तरह से भी मीट को किया जाता है पैक, यहां जानें इस बारे में

प्रिंसिपल डिस्पले पैनल का अर्थ है, कंटेनर, पैकेज का वह हिस्सा जो...

मीट

Packaging: मीट पैकिंग हो या कोई अन्य प्रोडक्ट, सभी के लिए FSSAI ने बनाए हैं ये नियम

यह गुणवत्ता नियंत्रण से गुणवत्ता प्रबंधन की ओर एक बदलाव को दर्शाता...

red meat
मीट

Meat: मीट की वजह से बढ़ रही है इस तरह के पैकिंग कंटेनरों की डिमांड

क्योंकि मांस के उत्पादों जैसे प्रोसेस्ड फूड का सेवन बढ़ रहा है....