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Animal Husbandry: मिथुन के लिए कृत्रिम गर्भाधान जैसे मुश्किल कार्य को इस संस्थान ने बनाया आसान

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मिथुन संस्थान की फोटो.

नई दिल्ली. मिथुन (बोस फ्रंटलिस) पर अनुसंधान कार्य को रफ्तार देने के मकसद से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में नागालैंड राज्य में आईसीएआर-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केंद्र की जून 1988 में नींव रखी गई. जहां तक रही मिथुन की बात ये बोविडे परिवार से संबंध रखने वाली और जुगाली करने वाली प्रजाति के जानवर हैं. जबकि इन्हें जंगली गौर (बोस गौरस) का पालतू रूप भी कहा जाता है. मिथुन के बारे में आईसीएआर-एनआरसी की वेबसाइट पर जो जानकारी है उसके मुताबिक ये पूर्वी हिमालय का मूल निवासी है और इसे भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का ‘बलि का बैल’ भी कहते हैं. वहीं मिथुन पर आईसीएआर-एनआरसी इस प्रजाति के संरक्षण, प्रजनन और स्वास्थ्य प्रबंधन में अहम रोल अदा कर रहा है. संस्थान के वैज्ञानिकों ने गुजरे 28 सालों में मिथुन पालन को एक टिकाऊ कामर्शियल इस्तेमाल के मकसद से किसानों के अनुकूल प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के लिए एक पैकेज विकसित किया है.

तब सीएम ने दी इस बात की सहमति
मिथुन को लेकर समय-समय पर आईसीएआर-एनआरसी कई प्रयास करता है. साल 2016 में 28 जुलाई को आईसीएआर-एनआरसी के निदेशक डॉ. अभिजीत मित्रा ने नागालैंड के मुख्यमंत्री टीआर ज़ेलियांग से मिलकर संस्थान की उपलब्धियों के बारे में बताया था. बैठक में एफएसएसएआई के तहत एक खाद्य पशु के रूप में मिथुन का पंजीकरण, नागालैंड के विज़न-2030 में मिथुन पालन को एक लाभदायक उद्यम के रूप में शामिल किया जाना, नागालैंड के पशु चिकित्सा और पशुपालन विभाग के तहत मिथुन फार्मों की स्थापना करना, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में एक कार्यक्रम का उत्सव, एक वार्षिक ‘मिथुन दिवस’, और मिथुन पालन के लिए बैंक योग्य योजनाओं की आवश्यकताओं पर जोर देने की बात कही गई थी. तब सीएम ने एफएसएसएआई के साथ खाद्य पशु के रूप में मिथुन के पंजीकरण के मुद्दे पर चर्चा करने के मकसद से कैबिनेट नोट लेने पर भी सहमति व्यक्त की थी.

किसानों में वितरित किया गया मिथुन
बात की जाए मिथुन को लेकर संस्थान के अन्य कार्यों की तो गत 30 अप्रैल 2016 को, डॉ. एच. रहमान, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), आईसीएआर, नई दिल्ली ने नागालैंड के दीमापुर के मेडजिफेमा ब्लॉक के मोलवोम गांव में किसानों के खेतों के नीचे मिथुन पालन की वैकल्पिक अर्ध-गहन प्रणाली को शुरू किया था. इस दौरान जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) के तहत, मोलवोम गांव के तीन किसानों को नौ मिथुन गाय और एक मिथुन बछड़ा दिया गया था. गौरतलब है कि वीर्य संग्रह और कृत्रिम गर्भाधान (एआई) एक मुश्किल काम है. जबकि एआई किसी भी आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए जरूरी भी होता है. यही वजह है कि एनिमल फिजियोलॉजी एंड रिप्रोडक्शन सेक्शन के वैज्ञानिकों की टीम ने नियंत्रित बायो-फ्रीजर का इस्तेमाल करके मिथुन वीर्य को फ्रीज के लिए अहम कदम उठाया था.

मिथुन से कराया गया गर्भाधान
मिथुन में एस्ट्रस का पता लगाने की समस्या का हल ढूंढने के लिए टादम बाउंड एआई के लिए ‘ओवसिंक’ प्रोटोकॉल को सफलतापूर्वक मान्य किया गया. फिर कृत्रिम योनि का इस्तेमाल करके वीर्य के संग्रह को भी प्रमाण के अनुसार किया गया. तब मिथुन फार्म में 100% एआई लागू करने के मकसद से एस्ट्रस सिंक्रोनाइज़ेशन और समयबद्ध एआई प्रस्तुत किया गया. इस दौरान 28 मिथुन गायों का मद सिंक्रोनाइजेशन हुआा. तमाम मिथुन में से 24 (85.71%) ने मद व्यवहार डिसप्ले किया. वहीं 19 जानवरों को जमे हुए-पिघले हुए मिथुन से गर्भाधान कराया गया और 14 (73.68%) को नॉन-रिटर्न दर और प्रति-रेक्टल परीक्षण के आधार पर गर्भवती हुए. जिससे 09 मादा और 2 नर बछड़े पैदा हुए.

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