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Murrah Milk: हरियाणा-पंजाब ही नहीं आंध्रा प्रदेश में इसलिए पाली जा रही हैं मुर्राह भैंस

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Livestockanimalnews

नई दिल्ली. दूध उत्पादन के लिए पशुपालक भैंसों को पालता है. भैंस दूध ज्यादा दे इसलिए किसान अच्छी नस्ल की भैंस को पालना पसंद करते हैं. अब बात आती है कि अच्छी नस्ल की भैंस कौनसी है, जो औरों की तुलना में ज्यादा दूध तो आज लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज बताएगा कि किस भैंस का पालन करने से आपको लाभ होगा. देश के कुल दूध उत्पादन 230.58 मिलियन टन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भैंस की 54 फीसद है. लगातार देश में दूध उत्पाूदन बढ़ रहा है. बड़े दुधारू पशुओं की बात करें तो उसमे भैंसों की संख्या 11 करोड़ के आसपास है. ज्यादा दूध देने और दूध की क्वालिटी के मामले में मुर्राह नस्ल की भैंस सबसे अव्वल मानी जाती है. देश में प्योर ब्रीड वाली भैंसों की कुल संख्या में मुर्राह की संख्या करीब छह करोड़ है.

भारत में मुर्रा भैंस के क्षेत्र
मुर्राह भैंस का गृह क्षेत्र हरियाणा के दक्षिणी भागों तक फैला हुआ है, जिसमें रोहतक, जिंद, हिसार, झाझर, फतेहाबाद, गुड़गांव जिले और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली शामिल हैं. हालांकि, यह नस्ल देश के तकरीबन सभी हिस्सों में फैल गई है और इसे या तो शुद्ध रूप में पाला जा रहा है या स्थानीय भैंसों को उन्नत करने के लिए उन्नत नस्ल के रूप में उपयोग किया जा रहा है. अब तो राजस्थान में सबसे ज्यादा मुर्रा भैंस को सबसे ज्यादा पाला जाता है.

विदेशों में भी मुर्राह भैंस
मुर्राह नस्ल की भैंस और भैंसे को बुल्गारिया, फिलीपींस, मलेशिया, थाईलैंड, चीन, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, नेपाल, पूर्व यूएसएसआर, म्यांमार, वियतनाम, ब्राजील और श्रीलंका जैसे कई विकासशील देशों के पशुधन उद्योग में भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है.

दूध में सबसे अच्छी मानी जाती है
लगातार देश में दूध उत्पाूदन बढ़ रहा है. ज्यादा दूध देने और दूध की क्वालिटी के मामले में मुर्राह नस्ल की भैंस सबसे अव्वल मानी जाती है.
ऐसे में पशुपालकों के बीच इस भैंसों की ड‍िमांड रहती है, ज‍िसके तहत देश भर से लोग हर‍ियाणा से मुर्राह भैंसों की खरीदारी करने आते हैं, लेक‍िन, इन द‍िनों इन भैंसों को खरीदार नहीं म‍िल रहे हैं.

सींग अन्य नस्लों से भिन्न
मुर्राह भैंस के सींग दूसरी भैस से अलग होते हैं. सींग छोटा, कड़ा, पीछे और ऊपर की ओर मुड़ता हुआ और अंत में सर्पिल रूप से अंदर की ओर मुड़ता हुआ. सींग कुछ हद तक चपटे होने चाहिए. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है सींग थोड़े ढीले हो जाते हैं लेकिन सर्पिल मोड़ बढ़ जाते हैं. मुर्राह भैंस की आंखें बेहद खूबसूरत होती हैं. इनकी आंखें काली होती हैं. इसकी पूंछ काले या सफेद रंग की हो सकती है.

भैंस का आकार
शरीर भारी और पच्चर के आकार का होता है.सिर बहुत बड़ा न होकर मीडियम आकार का होता है. भैंसों में गर्दन लंबी और पतली होती है जबकि भैंसे में मोटी और भारी होती है. इतना ही नहीं कान छोटे, पतले और सतर्क होते हैं.

शरीर की लंबाई (सेमी)
भैंसे की लंबाई करीब 150 सेमी.
भैंस की लांबी 148 सेमी होती है.

कंधों पर ऊंचाई(सेमी)
भैंसे 142
भैंस 133
जन्म के समय वजन (किलो)
भैंसे का जन्म के समय 31.7 किलो तक का वजन होता है.
जबकि मादा बच्चे का वजन 30 किलो तक हो सकता है.

वयस्क वजन (किलो)
वयस्क होने पर भैंसे का वजन 400-800 के बीच में हो सकता है.
भैंस के वयस्क होने पर वजन 350-700 के बीच में हो सकता है.

दूध की उपज
दूध की पैदावार अलग-अलग जगहों पर प्रबंधन और पर्यावरण की परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकती है, जिसके तहत जानवरों को पाला जाता है. बड़ी भैंस का औसत दूध 1800 किलोग्राम तक बताया गया है प्रति वर्ष. लंबे समय तक स्तनपान कराने वाली भैंसें आम तौर पर उच्च दूध उत्पादक होती हैं. मुर्राह भैंसें की एक और खासियत ये है कि वो अपनी लंबी उम्र और बाद के स्तनपान के दौरान भी लगातार दूध देने के लिए जानी जाती हैं.

मुर्रा भैंस की औसत आयु
पशु विशेषज्ञों की मानें तो पहले ब्यांत के समय औसत आयु 1,319 दिन होती है और पहली बार दूध देने की अवधि की औसत आयु 187.6 दिन जबकि समग्र स्तनपान के लिए 154.8 दिन होती है. सेवा अवधि पहली समानता में औसतन 177.1 दिन और समग्र समानता में 136.3 दिन है. मुर्राह में औसतन छह महीने की शुष्क अवधि होती है, जिसका ब्यांत अंतराल का प्रजनन और उत्पादन क्षमता दोनों पर सीधा असर पड़ता है.

आवास का प्रबंधन
प्रजनन में इन भैंसों को मिश्रित प्रकार की आवास व्यवस्था में रखा जाता है. भैंसों को खुले में किसी पेड़ या खंभे से बांध दिया जाता है, लेकिन अत्यधिक मौसम की स्थिति के दौरान शेड में रखा जाता है. घर अच्छी तरह हवादार हैं और ज्यादातर कच्चे फर्श वाली पक्की दीवारों से बने होने चाहिए.

क्या खिलाना चाहिए
जानवरों को रबी में बरसीम, जई और सरसों हरा चारा खिलाया जाता है और ख़रीफ़ में बाजरा, ज्वार और क्लस्टर बीन खिलाया जाता है. दुबले मौसम में मुर्राह जानवरों को खली और अन्य सांद्रता के साथ गेहूं और दाल के भूसे पर रखा जाता है. अधिकतर महिलाएं भैंस पालन (80%) में लगी हुई हैं, और भोजन, दूध देने, सफाई आदि से संबंधित सभी गतिविधियों की देखभाल उनके द्वारा की जाती है.

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