Home पशुपालन Zanskari Horse: लद्दाख का जांस्करी घोड़ा, जानें इसके बारे में
पशुपालन

Zanskari Horse: लद्दाख का जांस्करी घोड़ा, जानें इसके बारे में

घोड़ों की ये नस्ल अपनी कठोरता, अत्यधिक ठंडी जलवायु का सामना करने की क्षमता रखती है.
जांस्करी घोड़ा.

नई दिल्ली. कश्मीर के कामकाजी जानवर के रूप में जाना जाने वाला जांस्करी घोड़ा देशी हिमालयी घोड़ों की एक दुर्लभ प्रजाति है. हालांकि ये नस्ल कश्मीर में नहीं पाई जाती है, ये लद्दाख क्षेत्र के कारगिल से मूल रूप से आने वाला जांस्कारी में पाई जाती है. बताया गया है कि 90 के दशक से पहले कश्मीर में एक लोकप्रिय पालतू घोड़ा था. इस घोड़े का इस्तेमाल खासतौर पर माल ढोने के लिए किया जाता था. 90 के दशक में टोंगा में इस जानवर का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन परिवहन के साधनों में प्रगति के साथ यह नस्ल किसी तरह कम होती जा रही है. आइये जानते हैं जांस्कारी घोड़े के बारे में कुछ बातें.

ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में लेह-लद्दाख की एक देशी टट्टू नस्ल जांस्करी ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है. घोड़ों की ये नस्ल अपनी कठोरता, अत्यधिक ठंडी जलवायु का सामना करने की क्षमता रखती है. जबरदस्त परिश्रम करने और उच्च ऊंचाई पर भार ले जाने की क्षमता के लिए जानी जाती है.

ये है जांस्करी घोड़े की विशेषताएं: इन घोड़ों की लंबाई औसत होती है. करीब 120 सेंटीमीटर लंबे ये घोड़े शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस कम तापमान पर भी ऊंचाई पर भार ढोने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं. जांस्करी घोड़ों की अनुमानित आबादी 15,000-20,000 थी, जिसमें कश्मीर का योगदान कुल में लगभग 70 प्रतिशत था. कारगिल में ये घोड़े बहुतायत में पाए जाते थे, वहां भी इनकी संख्या अब घटकर कुछ सौ रह गई है. इन घोड़ों का प्रमुख शरीर का रंग ग्रे के बाद काला और तांबे का होता है. घोड़ों को उनके काम करने, पर्याप्त रूप से दौड़ने और ऊंचाई पर भार उठाने की क्षमता के लिए जाना जाता है.

कठिन जलवायु के लिए बेहतर: जांस्करी घोड़े वहां की जलवायु के लिए जाने जाते हैं. ये कम आक्सीजन वाले क्षेत्र में भार ढोने की क्षमता रखते हैं. घाटी के किसानों के पास ज़्यादातर टट्टू दुर्लभ हैं, हालांकि जांस्करी घोड़ों की तुलना में ये कम कुशल हैं। इन घोड़ों का इस्तेमाल आमतौर पर किसान घरेलू कामों के लिए करते थे. जांस्करी घोड़े की ऊंचाई सामान्य घोड़े से अधिक होती थी. कई गांवों में, इन घोड़ों का इस्तेमाल बगीचों से सेब के बक्से को बाजार तक ले जाने के लिए किया जाता था. घोड़े की ये नस्ल अपनी कठोरता, अत्यधिक ठंडी जलवायु का सामना करने की क्षमता, अथक परिश्रम करने और उच्च ऊंचाई पर भार ले जाने की क्षमता के लिए जानी जाती है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

पशुपालन

Cow Shelter Home: देश की इस गोशाला को मंदिर मानकर पूजते हैं लोग, श्रद्धालु लगाते हैं 108 परिक्रमा

भवानी माता मार्ग स्थित श्री गणेश गोशाला की स्थापना साल 1925 में...

sonepur pashu mela
पशुपालन

Animal Husbandry: नए पशु को बाड़े में लाने से पहले इन कामों को जरूर कर लें पशुपालक

ऐसे में बीमारियों के फैलने का खतरा बेहद ही कम हो जाता...

पीपीपी मॉडल से गौशाला की तर्ज पर गोवंश विहार खोले जाएंगे. इस नीति में 1रुपये की दर से निजी निवेशकों को जमीन दी जाएगी.
पशुपालन

Goat Farming: दो तरह से होगी बकरी पालन में कमाई, यहां पढ़ें तरीका

जिसका सीधा सा मतलब है कि गोट फार्म से अच्छी कमाई होती...

छोटानागपुरी भेड़ की नस्ल मुख्य रूप से झारखंड में पाई जाती है.
पशुपालन

Native Breeds of Jharkhand: छोटानागपुरी भेड़ ऊन के लिए है फेमस, जानें इसके बारे में

छोटानागपुरी भेड़ की नस्ल मुख्य रूप से झारखंड में पाई जाती है.