नई दिल्ली. भेड़ पालन कम खर्च में शुरू हो जाता है. दरअसल भेड़ पालने के लिए महंगे घर या शेड़ की जरूरत नहीं होती है. इनका आहार भी काफी सरल होता है. भेड़ पालन सरल इसलिए है. क्योंकि भेड़ आकार में छोटी होती है. कम जगह में आराम से रह सकती हैं. जल्दी-जल्दी बड़ी हो जाती हैं. इतना ही नहीं यह मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लेती हैं.पेड़, घास खिलाकर भेड़ पाली जा सकती हैं. इसको पालने से मुनाफा भी ठीक-ठाक हो जाता है. देश में भेड़ कई प्रकार की पाई जाती हैं, आज हम बात कर रहे हैं छोटानागपुरी नस्ल की भेड़ की, ये प्रमुख रूप से झारखंड में पाई जाती है. इस आर्टिकल के जरिए जानते हैं इस भेड़ की क्या विशेषताएं हैं.
छोटानागपुरी भेड़ एक अच्छी नस्ल है जिसका उपयोग ऊन और मांस उत्पादन के लिए किया जाता है। यह नस्ल भारत में लोकप्रिय है और इसका पालन करना आसान है. यह नस्ल ऊन उत्पादन के लिए जानी जाती है और इससे 2-4 किलोग्राम ऊन प्रति भेड़ प्राप्त होती है. यह मध्यम आकार की भेड़ है, जिसका वजन 25-40 किलोग्राम होता है.
ये है छोटानागपुरी की विशेषता: छोटानागपुरी भेड़ की नस्ल मुख्य रूप से झारखंड में पाई जाती है. हालांकि कुछ संख्या में ये बिहार में भी पाई जाती हैं. ये भेड़ छोटे, हल्के वजन की होती है. इस नस्ल की भेड़ का रंग हल्का भूरा और भूरा होता है. कान छोटे और सिर के समानांतर होते हैं. पूंछ पतली और छोटी होती है और ऊन मोटा, बालों वाला और खुला होता है.
नस्ल की ये है खासयित: यह नस्ल प्रजनन के लिए अच्छी मानी जाती है और इसे एक वर्ष में एक बार बच्चे पैदा करने के लिए जाना जाता है. यह नस्ल आमतौर पर स्वस्थ होती है और इसे सामान्य स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है. यह नस्ल अच्छी तरह से घास और दाना खा सकती है. इस नस्ल की भेड़ का मांस भी स्वादिष्ट होता है और इसका उपयोग मांस के लिए किया जाता है. यह नस्ल ऊन उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है.
कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं अच्छीः भेड़ की प्रजातियां की बात की जाए तो लोही, कूका और गुरेज को दूध के लिए ज्यादा मुफीद माना जाता है. जबकि हसन, नेल्लोर, जालौनी, मांड्या, शाहवादी और बाजीरी को मांस के लिए बेहतर नस्ल माना जाता है. वहीं बीकानेरी, बैलरी, चोकला, भाकरवाल, काठियावाड़ी और मारवाड़ मीट के लिए अच्छी नस्ल माना जाता है.
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