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Goat: गोहिलवाड़ी नस्ल और कच्छी बकरी की खासियत

हरा चारा प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन ए भरपूर होता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. भारत में बकरियों की कई नस्लें पाई जाती हैं. इन्हें कैसे पाला जाता है, इसका तरीका पना होना चाहिए. वैसे तो बकरी को गरीबों की गाय भी कहते हैं.बकरी पालन करके अच्छी कमाई की जा सकती है. बहुत से गांवों में लोग अपने घरों में एक या दो की संख्या में बकरी जरूर पालते हैं. इससे उन्हें बकरी का दूध मिलता है और जब उन्हें ज्यादा पैसों की जरूरत होती है तो बकरी को बेच देते हैं. वहीं बकरी जब बच्चों को जन्म देती है तो कुछ दिनों तक पालने के बाद बेचने से ज्यादा मुनाफा मिलता है. अगर बड़े पैमाने पर बकरी पालन का काम किया जाए तो इनकम भी ज्यादा मिलती है. आज बात कर रहे हैं गुजरात की बकरियों की नस्ल के बारे में. गुजरात में गोहिलवाड़ी नस्ल और कच्छी बकरी बेहद फेमस है.

बकरी पालने के लिए अगर शेड वगैरह बनाया जाए तो ये काफी उपयोगी हो सकता है. शुरू में किसान 5 से 10 बकरी से भी इस व्यवसाय की शुरुआत कर सकते हैं. बकरी पालन करने के लिए देश में बहुत सी नस्लें हैं. इनमें से गोहिलवाड़ी और कच्छी नस्ल गुजरात की खास पहचान है. एक बकरी को मीट के लिए पाला जाता है. इससे अच्छी मात्रा में मीट मिलता है. इस नस्ल के बकरों की डिमांड बहुत रहती है.

कच्छी बकरी के बारे में: कच्छी बकरी (जिसे काठियावाड़ी भी कहा जाता है). भारत के गुजरात राज्य की घरेलू बकरी की एक महत्वपूर्ण नस्ल है. यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है और मांस और दूध उत्पादन दोनों के लिए पाली जाती है. इस नस्ल को गुजरात के कच्छ जिले की मूल निवासी माना जाता है. कच्छी बकरी की नस्ल का नाम ‘कच्छ’ जिले के नाम पर रखा गया है. उत्तरी गुजरात का कच्छ जिला इस बकरी की नस्ल का प्राकृतिक आवास है. हालांकि बकरियां कच्छ क्षेत्र के अलावा दक्षिणी राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं.

गोहिलवाड़ी नस्ल के बकरे खासतौर गुजरात के राजकोट, जूनागढ़, पोरबंद, अमरेली, और भावनगर में पाले जाते हैं. हालांकि देश इनकी तादात बेहद कम है. गोहिलवाड़ी नस्ल का बकरा 50 से 55 किलो वजन तक और बकरी 40 से 45 किलो तक की पाई जाती है. इनका रंग काला होता है, सींग मुड़े हुए और मोटे होते हैं.

बकरियों के लिए जरूरी बातें: बकरियों को खरीदते समय उनके नस्ल पर जरूर ध्यान देना चाहिए. बकरियों के उचित विकास के लिए उनके आहार पर ध्यान देने की जरूरत होती है. उनके साफ-सुथरे रख-रखाव, रोग प्रबंधन एवं टीकाकरण पर भी ध्यान देना जरूरी है. प्रति बकरी औसत दूध उत्पादन 2.7 किलोग्राम पाया गया है, जो हमारे यहां की औसत उत्पादन से कम नहीं है. इस नस्ल की बकरी से एक बार में 2, 3 या 4 बच्चे पैदा होते हैं.

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