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NDDB-Amul गोजातीय मादा बछड़ों को लेकर चला रहा है ये अभ‍ियान, पढ़ें डिटेल

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कार्यक्रम में मौजूद मेहमान.

नई दिल्ली. पशुपालन में पशुपालकों को सबसे बड़ा नुकसान पशुओं की मृत्युदर के कारण होता है. एक झटके में पशुपालकों का लाखोें रुपये डूब जाते हैं. पशुओं में मृत्युदर को कम करने के लिए सरकार की तरफ से टीकाकरण भी किया जाता है. इसको लेकर अभियान भी चलाया जाता है. वहीं एनडीडीबी ने भी गोजातीय मादा बछड़ों को लेकर एक अभियान की शुरुआत की है. जिसके तहत इन बछड़ों को 100 फीसदी वैक्सीनेशन कवरेज दिया जाएगा. जिससे उन्हें ब्रुसेलोसिस जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकेगा.

बताते चलें कि एनडीडीबी के अध्यक्ष डॉ. मीनेश सी शाह ने खाद्य और कृषि द्वारा ‘एक स्वास्थ्य के साथ पशु स्वास्थ्य’ पर बहुक्षेत्रीय विशेषज्ञ कार्यशाला के भाग के रूप में ‘एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के साथ पशु स्वास्थ्य में समुदाय और निजी क्षेत्र को शामिल करना’ विषय पर एक तकनीकी सत्र के लिए चर्चा की अध्यक्षता की. जहां संयुक्त राष्ट्र संगठन (एफएओ)। सत्र में डॉ. अनुप कालरा, संयुक्त सचिव, इंफॉर्मेटिका हेल्थकेयर और डॉ. दीपांकर घोष, वरिष्ठ निदेशक, जैव विविधता संरक्षण, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत कार्यालय पैनलिस्ट के रूप में शामिल थे.

वन हेल्थ पायलट मॉडल को लागू करेगा
यहां कार्यक्रम में ज़ूनोटिक रोगों की व्यापकता पर पर बोलते हुए एनडीडीबी अध्यक्ष ने ईको सिस्टम की सुरक्षा के लिए ‘एक स्वास्थ्य’ फॉल्क इथिक्स को अपनाने की तात्कालिकता पर जोर दिया. उन्होंने एनएडीसीपी नामक भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया जिसमें ब्रुसेलोसिस के साथ-साथ अन्य आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीमारियों के खिलाफ देश में सभी मादा गोजातीय बछड़ों का 100 प्रतिशत टीकाकरण कवरेज शामिल है. उन्होंने यह भी कहा कि एनडीडीबी जीसीएमएमएफ (अमूल) और करमसाद मेडिकल कॉलेज के सहयोग से ब्रुसेलोसिस नियंत्रण के वन हेल्थ पायलट मॉडल को लागू कर रहा है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों में बीमारी को नियंत्रित करने का प्रयास करता है.

क्या है एनडीडीबी की ये पहल
उन्होंने गोवंश में सामान्य बीमारियों के प्रबंधन के लिए एथनोवेटरिनरी मेडिसिन (ईवीएम) के उपयोग को बढ़ावा देकर एंटीमाइक्रोबियल उपयोग (एएमयू) को कम करने में एनडीडीबी की पायलट पहल का भी उल्लेख किया, जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के बर्थ को रोकने में मदद करेगा. डॉ. कालरा ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) और खाद्य श्रृंखला पर इसके प्रभाव के बारे में हितधारकों को शिक्षित करने पर जोर दिया. इस बीच, डॉ. घोष ने पर्यावरण संरक्षण की वकालत करते हुए वन्यजीव स्वास्थ्य और भूमि योजना के समाधान के लिए संगठनों के बीच सरलीकृत संचार और सहयोगात्मक प्रयासों का आग्रह किया. गुजरात जैव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के महानिदेशक डॉ. सुबीर मजूमदार ने तकनीकी सत्र की शुरुआत में पशु स्वास्थ्य-एक स्वास्थ्य कार्यान्वयन में निजी क्षेत्र को शामिल करने का रोडमैप प्रस्तुत किया.

पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी
डॉ. शाह ने सभी के कल्याण के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने में सार्वजनिक और निजी हितधारकों के माध्यम से समुदायों को शामिल करने के महत्व को रेखांकित करते हुए सत्र का समापन किया. डॉ. शाह ने कहा कि 75 प्रतिशत डेयरी पशुओं के मालिक देश के छोटे दुग्ध उत्पादक एक विशाल और मजबूत समुदाय के रूप में उभरे हैं. एक स्थायी डेयरी क्षेत्र के लिए, यह जरूरी है कि उनके पास मौजूद 1-2 दुधारू पशु अच्छे स्वास्थ्य में हों ताकि इसकी उत्पादन क्षमता का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके. उन्होंने यह भी कहा कि यहां आयोजित विचार-विमर्श और चर्चा से भारत में वर्तमान में लागू किए जा रहे ‘वन हेल्थ’ उपायों का आकलन करने में मदद मिलेगी और वर्तमान मॉडल को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी.

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