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ओरण के लिए क्यों लड़ रहे हैं जैसलमेर के लोग, एनजीटी भी दे चुकी है ये फैसला, पढ़िए पूरी खबर

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जैसलमेर के रेगिस्तान की तीन तस्वीरें.

नई दिल्ली. जैसलमेर के इन सीमावर्ती विशाल चारागाहों में सदियों से ऐसे सैकड़ों कुएं है, जिनके जल से आमजन का जीवन तो चलता ही है, पशुधन भी पलता है. पशुपालन के लिए ही स्थानीय लोगों ने अपने चारागाहों (ओरण- गोचर) में यह कुएं बनाएं, जिससे उन्हें व उनके पशुधन को पानी मिल सके. इस क्षेत्र लाखों पशुओं के लिए सैकड़ों की संख्या पर कुएं हैं. इन सभी कुंओं पर हजारों की संख्या में पशु पानी पीते हैं. मगर, सरकार ने इन चारागाह, गोचर और ओरण की जमीन को विंड कंपनियों को आंवटित करना चाहती है. अगर,ऐसा हुआ तो मानव जाति के अलावा पशुओं के लिए भी बड़ा संकट पैदा हो जाएगा. आज हम ओरण खबर की तीसरी किस्त में ये बतान का प्रयास कर रहे हैं कि जैसलमेर औरधार के सीमावर्ती के लोग सुमेर सिंह के नेतृत्व में इस ओरण के लिए इतनी बड़ी लड़ाई क्यों लड़ रहे हैं.

जैसलमेर के संवाता में देगराय माता मंदिर ओरान आम संपत्ति संसाधनों (सीपीआर) और चारागाह के लिए समर्पित करीब 10 हजार हेक्टेयर के व्यापक क्षेत्र में फैला हुआ है. देगराय माता मंदिर ओरान की देखरेख में सीपीआर और चरागाह चराई के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो पशुधन केलिए बहुत जरूरी है. इतना ही नहीं क्षेत्र में चरवाहों की आजीविका का समर्थन करता है. अगर, सरकार ने इन ओरण की भूमि को सोलर विंड कंपनी को दे दिया तो पशुओं के सामने चारे-पानी का भीषण संकट पैदा हो जाएगा.

ये भूमि आध्यात्मिक महत्व भी रखती है
टीम ओरण जैसलमेर राजस्थान के संस्थापक सुमेर सिंह संवाता बताते हैं कि 10 हजार हेक्टेयर की विस्तृत भूमि को श्री देगराय माता के पवित्र “ओरण” के रूप में मान्यता प्राप्त है. विशेष रूप से, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र का विशिष्ट सीमांकन पेड़ों के तनों के चारों ओर बंधे माताजी के प्रतीक लाल कपड़े की उपस्थिति से होता है. यह अनूठी और पारंपरिक सीमा मंदिर की देखरेख के तहत भूमि की पवित्रता और सुरक्षा का प्रतीक है. इसइलाके की उर्वरता को देखते हुए, ओरान साल भर हरियाली से भरपूर रहता है. घास की यह प्रचुरता न केवल परिदृश्य की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाती है, बल्कि चराई के लिए एक निरंतर और टिकाऊ संसाधन भी सुनिश्चित करती है, जिससे स्थानीय समुदाय और उनके पशुधन को लाभ होता है. माताजी के प्रतीक की उपस्थिति और सतत हरियाली श्री डेगराय माता से जुड़ी इस पूजनीय भूमि के आध्यात्मिक और पारिस्थितिक महत्व को रेखांकित करती है.

ओरण से चलती है पांच हजार परिवारों की आजीविका
इस ओरान भूमि की लगभग 60 किलोमीटर की परिधि के भीतर, करीब 50,000 मवेशियों और 5,000 परिवारों की आजीविका इस ओरण द्वारा दी वाले संसाधनों से जटिल रूप से जुड़ी हुई है. इस क्षेत्र का विस्तृत कवरेज स्थानीय समुदाय और उनके पशुधन दोनों की भलाई को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

इस क्षेत्र में पशुओं के लिए पौष्टिक घास उगती है
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की घास उगती हुई पाई जाती है, जिनमें मुख्य रूप से सेवन घास (लासियुरस सिंडिकस), धम्मन घास (सेंच्रस सेटिगरस), बुर घास, बेकर घास, कराड घास (डाइकैन्थियम एनुलैटम), भर्ट घास (सेंचस बाइफ्लोरस) आदि शामिल हैं. प्रचुर मात्रा में हैं. इन घासों की प्रचुरता क्षेत्र की जैव विविधता और प्राकृतिक उर्वरता को रेखांकित करती है, जो पशुधन के लिए आवश्यक चारा प्रदान करती है।

हर 5 किमी पर तालाब निर्माण का समर्थन
सुमेर सिंह ने बताया कि डेगराय मंदिर का ओरान 10,000 हेक्टेयर में फैला है, जिनमें से कुछ सरकारी अधिकार क्षेत्र में हैं. सरकार आवश्यकतानुसार कंपनियों को भूमि का कुछ हिस्सा आवंटित करने का अधिकार सुरक्षित रखती है. इसे रोकने के लिए हमने स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर शेष भूमि को ओरण का दर्जा दिलाने के लिए अथक अभियान चलाए. परिणामस्वरूप, करीब 600 हेक्टेयर भूमि को ओरान संपत्ति के रूप में बहाल कर दिया गया.

एनजीटी ने भी हमारे ओरण के पक्ष में फैसला दिया
सुमेर सिंह ने बताया कि हमने सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन किया, मीडिया से जुड़े और ओरण और चरागाह भूमि के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों और सरकार से वकालत की. एइसी का नतीजा रहा कि नजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने आदेश दिया कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और अन्य वन्यजीवों जैसी कमजोर प्रजातियों के आवासों की रक्षा के लिए डेगराई ओरान के भीतर कोई उच्च-शक्ति लाइनें स्थापित नहीं की जानी चाहिए. वर्तमान में हमारे प्रयासों का ही नतीजा है कि इन 10,000 हेक्टेयर भूमि का उपयोग कई चरागाहों के लिए किया जा रहा है, साथ ही वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए हर 5 किमी पर तालाबों की स्थापना द्वारा ओरण को समर्थन दिया जा रहा है.

आंदोलन का नतीजे से पशुओं को पौष्टिक चारा मिला
ओरण भूमि के भीतर चरागाहों की सुरक्षा और रखरखाव में सुमेर सिंह के समर्पित प्रयासों के परिणामस्वरूप क्षेत्र के स्वास्थ्य और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इस पहल से पशुपालकों को अपने पशुओं के लिए पौष्टिक चारा उपलब्ध हुआ है. रणनीतिक रूप से निर्मित तालाबों की उपस्थिति ने चरवाहों के लिए पानी की तलाश में लंबी दूरी तय करने की आवश्यकता को कम कर दिया है, जिससे सुविधा और स्थिरता को बढ़ावा मिला है.

10 गांच के 50 हजार पशु चरते हैं
इन हस्तक्षेपों के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, पशुपालकों की संख्या में वृद्धि हुई है.वर्तमान में करीब 10 गांवों के करीब 50 हजार पशुधन चरते हैं. ओरान. पशुपालक समुदाय में यह वृद्धि सुमेर सिंह की सफलता को दर्शाती है. पशुधन और स्थानीय समुदायों दोनों के लिए एक स्वस्थ और अधिक टिकाऊ वातावरण बनाने का प्रयास करता है. सुमेर सिंह और स्थानीय लोगों द्वारा यह बताया कि गाय को सेवन घास (लासियुरस सिंडिकस) खिलाने से दूध की पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि होती है. इसके अलावा, बेकर घास को ऊंटों के लिए फायदेमंद बताया गया है. इसकी सूखी टहनियां जलाने से प्राप्त राख लगाना ऊंट के शरीर पर से केर (कप्पारिस डेसिडुआस) कम हो जाता है और खुजली (त्वचा रोग) काफी हद तक कम हो जाती है.

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