नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग में कई बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती हैं. जिसमें बड़ी संख्या में मुर्गियों की मौत हो जाती है. इससे पोल्ट्री फार्मिंग में फायदे की जगह नुकसान होने लग जाता है. इसलिए बीमारियों से मुर्गियों को बचाव जरूरी है. बचाव से पहले बीमारियों की जानकारी होना बहुत जरूरी है. इसी तरह से ई—कोलाई संक्रमण पक्षियों में बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है. जिससे कई प्रकार के संक्रमण पक्षियों में हो सकते हैं. इस बैक्टीरिया द्वारा कोली बेसीलोसिस, एगपेरीटोनाइटिस, एयर सेक्यूलाइटिस, सालर्पिजाइटिस, हजारे डिजीज आदि रोगों के लक्षण देखे जा सकते हैं.
पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि आमतौर पर यह बैक्टीरिया पक्षियों की आंत में पाया जाता है. वहीं ये संक्रमण पशुओं, पक्षियों और इंसानों आदि के पेट और आंतों में भी पाया जाता है. इस बीमारी से मुर्गियों को बचाना जरूरी होता है.
कैसे फैलती है ये बीमारी
इस रोग का प्रसार अंडों के माध्यम से हो सकता है, जिससे चूजों में बहुत ज्यादा मृत्यु दर देखी जा सकती है. लिटर व बीट रोग को फैलाने में सहायक होते हैं. मुंह और हवा के माध्यम से यह संक्रमण फैल सकता है. कॉलीसेप्टीसीमिया रक्त में इस जीवाणु के मिलने से यह अवस्था में होती है और इसमें सबसे पहले गुदों और दिल की झिल्ली में सूजन तथा दिल में स्ट्रा कलर का तरल पदार्थ मिलता है. खून से या सीधे ही सांस नली से यह बैक्टीरिया फेफड़ों में पहुंचकर एयरसेक्यूलाइटिस नामक रोग प्रकट करता है, जिसमें उत्पादन कम होना, खांसी आना तथा रेटलिंग आदि लक्षण दिखलाई देते हैं.
इस तरह का दिखता है लक्षण
सेप्टिसीमिया के कारण ओवीडक्ट में भी यह संक्रमण पहुंच जाता है, जिससे चूजे की नाभि द्वारा संक्रमण प्रवेश कर ओमफलाइटिस रोग के लक्षण दिखलाता है, जबकि एयरसेक्यूलाइटिस के असर के साथ पेरेटोनियम झिल्ली में सूजन पाई जाती है, जिसे एगपेरीटोनाइटिस कहते हैं. ई. कोलाई का आंतों में संक्रमण एंट्राइटिस नामक रोग पैदा करता है, जिससे आंतों के अन्दर की सतह पर सूजन पाई जाती है व पक्षी पतली बीट जैसे लक्षण दिखाता है. इस अवस्था में आंतों में अन्य संक्रमण जैसे कि आइमेरिया प्रजाति के लगने की संभावना रहती है.
तुरंत करवाएं पशु चिकित्सक से इलाज
कोलोग्रेन्यूलोमा अथवा हजारे डिसीज आंतों एवं लीवर पर जगह-जगह ट्यूमर जैसी गांठें दिखाई पड़ती है. इस अवस्था को कोलोग्रेन्यूलोमा कहते हैं. वहीं पोल्ट्री फार्म पर रोग की जानकारी होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर निदान करवाएं. पशु चिकित्सक की सलाह पर ऐन्टीबायोटिक्स का उपयोग कर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है.
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