नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग में मुर्गी पालन करके अच्छी कमाई की जा सकती है. आप चाहें तो लेयर मुर्गियों को पालकर अंडों का उत्पादन करके हर महीने हजारों रुपए और सालाना लाखों रुपए कमा सकते हैं. जबकि ब्रॉयलर मुर्गों को पालकर आप मीट उत्पादन करके भी हजारों और लाखों में कमाई कर सकते हैं. अगर ये कहा जाए कि पोल्ट्री फार्मिंग किसानों की की इनकम को दोगुना करने का एक बेहतरीन जरिया है तो गलत नहीं होगा. हालांकि पोल्ट्री पोल्ट्री फार्मिंग करने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी कर ली जाए तो फायदा ज्यादा होता है.
पोल्ट्री फार्मिंग कैसे शुरू करें और इसमें किन चीजों की जरूरत होती है? इन सब बातों की जानकारी होना एक पोल्ट्री फार्मर के लिए बेहद ही जरूरी है. इस आर्टिकल में हम आपको अंडा देने वाली देसी मुर्गी और मीट का उत्पादन करने वाले मुर्गों के बारे में कुछ जानकारी देने जा रहे हैं, जिससे आपको पोल्ट्री का काम शुरू करने में मदद मिलेगी. आर्टिकल को पूरा पढ़ें.
अंडा देने वाली देसी मुर्गी पालन कैसे करें
-घोंसला, लेइंग नेस्ट, वह स्थान है, जिसे एक बांस की टोकरी या लकड़ी के बक्से से बनाया जा सकता है. जो मुर्गी घर के कोनों में, किसी ऊंचे स्थान पर रखा जाना चाहिए.
-घर पर उपलब्ध पुरानी टोकरी, टूटी हंडी का भी इस्तेमाल किया जाता है. घोंसले पर सूखी, मुलायम, साफ पैरा घास का बिछौना बिछाया जा सकता है, जहां कुड़क मुर्गी बैठ सके.
-मुर्गियों को व उनके घोंसलों (लेइंग नेस्ट) को जूं, किलनी आदि बाहरी कीड़ों से बचाना जरूरी होता है. ताकि बार-बार खुजली से परेशानी न हो व मुर्गियां आराम से अंडे को से सकें.
-हमेशा ही साफ-सुथरा, आरामदायक घोंसला बनाएं. इससे अडे गंदे नहीं होते हैं. वहीं जंगली जानवर और पक्षी अंडे खा नहीं पाते हैं.
-इसका फायदा ये होता है कि इससे अंडो के चटकने टूटने, अंडो खाने की आदत में कमी और अंडों के खराब होने का अंदेशा बिल्कुल कम हो जाता है.
-अंडा देने वाली मुर्गी को नियमित रूप से प्रति तीन महीने के बाद कृमिनाशक दवा पिलाना चाहिए. इससे उत्पादन बेहतर होता है.
-घोंसले को ऐसी जगह बनाएं जहां मुर्गिंया अकेले रह सकें, क्योंकि मुर्गीयां हमेशा अकेले स्थान पर ही अंडे देना पसंद करती हैं. शोर वाली जगह घोंसला नहीं बनाना चाहिए.
-मुर्गी का घोंसला ऐसी जगह बनाये जहां पर सीधे तौर पर सूरज की रोशनी न पड़ती है. अगर अंधेरा रहेगा तो सही रहेगा. जगह हवादार होनी चाहिए.
-जमीन से कम से कम 2 फीट या फिर 1 हाथ की ऊंचाई पर हो तो बेहतर है. वहीं जगह ठंडी व सूखी होनी चाहिए.
-घोंसले के नजदीक हर समय साफ, पीने का पानी उपलब्ध होना चाहिए. इससे प्यास लगने पर उन्हें समय से पानी मिल जाएगा.
-घोंसले में दाना कोंडा, पत्ती, मक्का आदि रखना चाहिए. ऐसा करने से मुर्गी ज्यादा से ज्यादा समय अंडा सेने के लिए बैठती हैं.
इन टिप्स को भी गौर से पढ़ें
-15 हजार से अधिक पक्षियों वाले ब्रॉयलर और 30 हजार से अधिक के लेयर किसानों के पास अपना खुद का चारा प्लांट होना चाहिए.
-ब्रॉयलर किसान के पास अपनी खुद की सप्लाई चेन या रिटेल काउंटर होना चाहिए और लेयर किसान को सीधे अंडे की बिक्री करनी चाहिए.
-फीड देने की जगह, पानी देने की जगह, वेंटिलेशन, कूड़े की गहराई, कमरे के तापमान पर कोई भी समझौता उत्पादन को कम कर देगा.
-पोल्ट्री से हासिल पैसे को कभी भी अन्य व्यवसाय में न लगाएं और फार्म स्तर पर पोल्ट्री पोषण प्रयोगशाला स्थापित करके इसकी दक्षता में सुधार करने का प्रयास करें.
-पोल्ट्री फार्म का डिजाइन दूसरों से कॉपी न करें. पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि आपके क्षेत्र की खासियत अलग हो सकती है.
-बुखारी (आरी धूल हीटर) के बजाय स्पेस हीटर जैसी आधुनिक तकनीक को अपनाने से सांस संबंधी समस्याएं और शेड में कम नमी पैदा होती है.
-आपके फार्म में हर 30 हजार घन फीट क्षेत्र के लिए एक पंखा होना चाहिए. नहीं तो आप सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं.
-चूंकि माइकोप्लाज्मा हर जगह, विशेष रूप से भारत में है, इसलिए किसानों को समस्या के अनुसार परतों में महीने में एक बार और ब्रॉयलर में 3,12, और 18 दिनों में एंटीमाइकोप्लाज्मा दवाओं का मासिक कोर्स देना चाहिए.
-चूजों को कभी भी लंबी दूरी से न खरीदें और उनका परिवहन 30 से 32 डिग्री सेल्सियस पर किया जाना चाहिए.
-लेयर में 35 ग्राम से कम और ब्रॉयलर में 40 ग्राम से कम वजन वाले चूजे अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं और उन्हें एक दिन की उम्र में अलग कर देना चाहिए और अतिरिक्त विटामिन और पोषण पूर्ण आहार देना चाहिए.
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