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Poultry Disease: दो हफ्ते में मरने लगती हैं मुर्गियां, जानें क्या हैं इस खतरनाक बीमारी के लक्षण

Poultry farming: Not only airborne infections, but also water can spread disease in chickens, Livestocknews.com
फार्म में चारा खाती मुर्गियां. live stock animal news

नई दिल्ली. मुर्गियां में होने वाली तमाम बीमारियां पोल्ट्री कारोबार को नुकसान का सौदा बना देती हैं लेकिन इसमें फाउल टायफाइड बेहद ही खतरनाक है. एक्सपर्ट का कहना है कि पोल्ट्री के कारोबार को सबसे ज्यादा नुकसान इसी बीमारी के कारण होता है. दरसअल, इसकी वजह ये है कि इस बीमारी में मुर्गियों की बहुत ही कम अवधि में मौत होने लग जाती है. बीमारी के लक्षण आने के बाद बमुश्किल मुर्गियां दो हफ्ता जिंदा रह पाती हैं. इसलिए इस बीमारी को एक्सपर्ट भी बेहद ही खतरनाक मानते हैं और कहते हैं कि इससे मुर्गियों को बचाने का मतलब ये है कि पोल्ट्री कारोबार को डूबने से बचा लिया.

पोल्ट्री एक्सपर्ट के मुताबिक साल्मोनेला एन्टरिका गैलिनारम बैक्टीरिया से होने वाली ये ये एक खतरनाक बीमारी है. जिसका असर पूरी दुनिया में है. खासकर विकासशील देशों में तो इसका खतरा ज्यादा ही है. आमतौर पर इस बीमारी में कम उम्र के पक्षियों में भूख न लगने की समस्या रहती है. उन्हें कमजोरी महसूस होती है और वेंट क्षेत्र में सफेद मल पदार्थ चिपका हुआ रहता है. इतना ही नहीं ज्यादा उम्र वाले पक्षियों में पीलापन, डीहाईड्रेशन, दस्त, जख्मों में सूजन सांस रोग, अंधापन और जोड़ों में सूजन आदि ​लक्षण दिखाई देते हैं.

फाउल टायफाइड
पोल्ट्री एक्सपर्ट के मुताबिक यह व्यस्क मुर्गियों में हरे-पीले रंग के दस्त की छूतदार बीमारी है. यह पुलोरम से मिलती-जुलती बीमारी है.

कारण पर गौर करें तो सालमोनेला गैलिनेरम नाम के बैक्टीरिया की वजह से ये बीमारी मुर्गियों को अपना शिकार बनती है.

कैसे होता है इसका प्रसार
दूषित खाने-पानी के कारण मुर्गियां इस रोग से ग्रसित होती हैं. इसलिए इससे बचाना चाहिए.

यह बीमारी अंडे में संक्रमण द्वारा छोटे चूजों में फैलती चली जाती है.

इस रोग का प्रसार बीमार मुर्गियों से स्वस्थ मुर्गियों में तथा एक-दूसरे के सम्पर्क द्वारा होता है.

तुरंत ही बीमार ​मुर्गियों को हैल्दी मुर्गियों से अलग कर देना चाहिए.

लक्षण क्या हैं
पंखों का अव्यवस्थित होना यानि बिखराव की तरह नजर आना.

फीड को खाने में बेहद ही कमी देखी जाती है. जबकि प्यास का अहसास ज्यादा होता है.

मुर्गियों को ​झुंड से अलग स्थान में रहना अच्छा लगता है.

वहीं मुर्गियों को हरा-पीला दस्त होने लग जाता है.

आंतों व लीवर में सूजन के कारण एक-दो हफ्ते में मृत्यु हो जाती है.

क्या है बीमारी का उपचार
उपचार की बात की जाए तो ब्रीडिंग की मुर्गियों में इस रोग के नियंत्रण के लिये अंडे उत्पादन के 20 प्रतिशत के स्तर पर प्रत्येक मुर्गी का खून पुलोरम एन्टीजन द्वारा टेस्ट किया जाता है, जो पक्षी पॉजीटिव निकलते हैं, उनको ब्रीडिंग के लिये प्रयोग में नहीं लेना चाहिये. पशु चिकित्सक की सलाह पर उचित दवाओं के जरिए उपचार किया जा सकता है.

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