नई दिल्ली. देश में सबसे ज्यादा चिकन खाया जाता है. सरकारी आंकड़े ये कहते हैं कि देश में 52 फीसद से ज्यादा लोग चिकन खाते हैं. इसके चलते सभी पंचायतों, कस्बों और शहरों में मुर्गियों की कटिंग के मौजूदा तरीके की वजह से भारी मात्रा में वेस्ट निकलता है. जिसका आमतौर पर उचित उपयोग नहीं हो पाता है. एक्ससपर्ट का कहना है कि इस प्रकार तैयार किए गए मुर्गे हमेशा दूषित और हैल्थ को नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं. जिससे उपभोक्ताओं में बीमारियाँ फैलने की संभावना बढ़ जाती है.
यही वजह है कि केरल चिकन परियोजना, केरल राज्य कुक्कुट विकास निगम (KSPDC) भारतीय मांस उत्पाद (MPI), ब्रह्मगिरी विकास सोसायटी (BDS), मांस बोर्ड (ETP), रेंडरिंग प्लांट और बायोगैस प्लांट के साथ प्रमुख मुर्गी कटिंग और प्रोसेसिंग सुविधाओं की स्थापना का काम करने की योजना है.
क्या काम हो सकते हैं
इसके चलते बूचड़खानों में कोल्ड स्टोर और वध सुविधाओं को दूसरी या तीसरी पाली के दौरान स्टार्टअप्स और बिजनेस को पट्टे पर दिया जा सकता है.
राज्यों में शवों, मांस के स्टोरेज और बिक्री के लिए मान्यता प्राप्त निजी कोल्ड चेन सुविधाओं की अनुमति दी जा सकती है.
केवल वैज्ञानिक रूप से वध किए गए, तैयार और निरीक्षण किए गए चिकन को ही उचित शीतलन के बाद पैक किया जाना चाहिए.
वहीं मांस के स्टॉलों पर उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
शहरों में विशेष कट, मैरीनेट किए हुए हिस्से, पकाने के लिए तैयार, खाने के लिए तैयार चिकन उत्पाद बनाने की सुविधाएँ स्थापित की जा सकती हैं.
उपर्युक्त सुविधाओं के अलावा, सभी प्रमुख कस्बों और शहरों में बीमार, मृत पशुओं, शवों, मृत पक्षियों और जानवरों के उचित उपचार और निपटान के लिए रेंडरिंग प्लांट स्थापित किए जा सकते हैं.
इससे मृत पशुओं और शवों के उचित निपटान में सुविधा होगी और पर्यावरण प्रदूषण और बीमारियों के प्रसार को रोका जा सकेगा.
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