नई दिल्ली. अगर आपकी मुर्गियों में खांसी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ है और नाक से पानी आने जैसी समस्याएं दिख रही हैं तो सावधान हो जाने की जरूरत है. क्योंकि मुर्गियों को आईबी की बीमारी हो सकती है. ये बेहद ही खतरनाक संक्रामक सांस वाली बीमारी है. यह बीमारी वायरस के कारण मुर्गियों में होती है. इससे न सिर्फ मुर्गियों का उत्पादन प्रभावित होता है बल्कि उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. जिसके चलते मुर्गी पालन में पोल्ट्री फार्मर्स को बड़ा नुकसान होता है. इस बीमारी की एक खतरनाक बात और है कि यह कम उम्र की मुर्गियों में ज्यादा होती है. यानी पोल्ट्री फार्म के कारोबार को बंद करने में इस बीमारी का बड़ा रोल होता है.
पशुपालन विभाग राजस्थान के एक्सपर्ट ने लाइव स्टक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) से बताया कि जो मुर्गी पालक अंडों के उत्पादन के लिए लेयर मुर्गियों को पालते हैं, उनके लिए यह बीमारी बेहद ही खतरनाक है. क्योंकि इससे अंडों का उत्पादन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. मुर्गियों में मृत्यु दर बढ़ जाती है और बीमारी के इलाज में खर्च बढ़ता है इससे मुर्गी पालन की लागत भी बढ़ जाती है और नुकसान ज्यादा हो जाता है. ऐसे में मुर्गियों को इस बीमारी से बचाना चाहिए. आगे आपको लक्षण बचाव के तरीका आदि के बारे में हम जानकारी देंगे.
आईबी बीमारी
यह बीमारी बेहद तेजी से हर उम्र के पक्षी को हो सकती है. यह तेजी से फैलने वाला श्वास रोग है. यह रोग सर्दी में अधिक होता है.
क्या है इसका कारण
यह रोग वायरस (कोरोना ग्रुप) के कारण होता है. यह आमतौर पर चार सप्ताह से कम उम्र वाले चूजों को ज्यादा ग्रसित करता है.
संक्रमित उपकरणों, दाना-पानी आदि से तथा वायु द्वारा रोग फैलता है.
सांस लेने में कठिनाई और सांस में एक विशेष प्रकार की आवाज पायी जाती है जिसे गैस्पिंग राल्स कहते हैं.
आंख और नाक से पानी बहता है, तथा सूजन हो जाती है.
चूजे छींकते व हांफते हुए दिखाई देते हैं.
फीड खाने में कमी, एल्बुमिन पतला और अंडा उत्पादन कम हो जाता है, जो 3-4 सप्ताह में सामान्य हो जाता है.
मुर्गियों के अंडे का छिलका असामान्य हो जाता है.
अधिकांश रोगग्रस्त चूजे मर जाते हैं और जो बच जाते हैं वे इस रोग के वाहक रहते हैं.
इस रोग के लक्षण रानीखेत रोग से मिलते हैं लेकिन रानीखेत में मृत्युदर ज्यादा होती है तथा अंडा उत्पादन बिल्कुल बन्द हो जाता है और साथ ही लकवे के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं.
टीकाकरण
इस रोग की रोकथाम के लिये लेयर पक्षियों में प्रायः 21 दिन पर, 13 सप्ताह और 19 सप्ताह की आयु में टीकाकरण किया जाना चाहिये.
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