नई दिल्ली. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का काम यह है कि जब कोई बीमारी फैलती है तो इसको लेकर वह इमरजेंसी घोषित करता है. पिछले कुछ सालों में हो विश्व भर में पब्लिक हेल्थ से जुड़ी कई इमरजेंसी जारी की जा चुकी है. डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी की गई 6 इमरजेंसी में से पांच इमरजेंसी के पीछे पशुओं से जुड़ी बीमारी बताई जा रही है. एक्सपर्ट इस तरह की बीमारियों को जूनोटिक बीमारी कहते हैं. मतलब पशुओं से इंसानों में होने वाली बीमारी. ऐसी बीमारी पर काबू पाने के लिए भारत में भी काम किया जा रहा है.
भारत में इन बीमारियों से निपटने के कार्यक्रम को नेशनल वन हेल्थ मिशन नाम दिया गया है. इसके तहत जी-20 महामारी कोष से जो मदद मिली है उसका इस्तेमाल किया जाएगा. बता दें कि महामारी कोष भारत को 25 मिलियन डॉलर करीब 220 करोड़ रुपये मिले हैं. केंद्रीय मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की ओर से देश में या मिशन चलाया जा रहा है, ताकि इस तरह की बीमारियों पर काबू पाया जा सके.
1 मिलियन लोगों की हो जाती है मौत
एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि कोविड, स्वाइन फ्लू, एशियाई फ्लू, इबोला, जीका वायरस एवं इन्फ्लूएंजा समेत और न जाने ऐसी कितनी महामारी है, जो पशु पक्षियों से इंसान में आई है. एक आंकड़े के मुताबिक 1.7 मिलियन वायरस जंगल में फैले होते हैं. इसमें बहुत से सारे ऐसे हैं जो जूनोटिक हैं. दुनिया में हर साल इसके एक बिलियन केस सामने आते हैं. जबकि इससे एक मिलियन मौत हो जाती है. यही वजह है कि वर्ल्ड लेवल पर इस पर काबू पाने की कोशिश की जाती है. भारत में इसे शुरुआत में पांच राज्यों में शुरू किया गया है लेकिन इसकी तैयारी देशभर में चल रही है.
मिशन के तहत क्या-क्या काम होगा
एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि एनओएचएम के तहत बड़े काम किए जाएंगे. जिसमें पहले नंबर पर नेशनल स्टेट लेवल महामारी की जांच की संयुक्त टीम बनेगी. महामारी फैलने पर सहयोग टीम रिस्पांस करेगी. नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के तहत सभी पशुओं के बीमारी की निगरानी सिस्टम तैयार होगा. मिशन के रेगुलेटरी सिस्टम को मजबूत बनाने पर काम होगा. नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के साथ मिलकर जल्द से जल्द महामारी की गंभीरता को काम किया जाएगा. प्राथमिक रोगों की वैक्सीन और इलाज विकसित करने के लिए रिसर्च भी होगी. बीमारी का पता लगाने के लिए और संवेदनशीलता में सुधार लाने के लिए जिनोमिक और पर्यावरण निगरानी फार्मूले तैयार होंगे.
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