नई दिल्ली. पशुपालन में भैंस ऐसा पशु है, जिससे पशुपालन किया जाए तो ज्यादा से ज्यादा इनकम हासिल की जा सकती है. हालांकि सालभर में अप्रैल से सितंबर तक भैंस को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. क्योंकि इन दिनों में भैंस को हीट स्ट्रेस की समस्या रहती है. हीट स्ट्रेस भैंसों के प्रोडक्शन व प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. तापमान ह्यूमिडिटी इंडेस्क हीट स्ट्रेस को मापने के लिए आमतौर इस्तेमाल किया जाने वाला इंडेस्क है. जब तापमान ह्यूमिडिटी इंडेस्क 75 से ज्यादा बढ़ने लगता है तो भैंसों का हीट स्ट्रेस का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है.
अप्रैल से सितम्बर के माह सर्वोत्तम उत्पादन के लिए अति नाजुक है. अप्रैल से सितम्बर माह के दौरान उचित प्रबंधन रणनीतियां, जैसे की पोषण में बदलाव व वायुमंडलीय बदलाव हीट स्ट्रेस के निगेटिव प्रभाव से बचाव के लिए बेहद जरूरी है. उत्पादन क्षमता में इजाफा और गर्म वातावरण में अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के लिए गर्मी सहन कर पाने वाले पशुओं का चयन करना भी हीट स्ट्रेस प्रबंधन का एक उपाय है. ही स्ट्रेस को तीन तरह से कम किया जा सकता है. आनुवंशिक रूप से गर्मी सहन करने वाली डेरी नस्ले विकसित करन से, पोषण में बदलाव और वातावरणीय बदलाव के जरिए.
गर्मी सहन करने वाली डेरी नस्लें विकसित करना
ज्यादा दूध उत्पादन के लिए चयनित पशुओं में मेटाबोलिक हीट ज्यादा बनता है, जो पशुओं में हीट स्ट्रेस के लिए ज्यादा जिम्मेदार होता है. इससे बचने के लिए हीट स्ट्रेस से प्रभावित क्षेत्र से पशुओं का चयन करना या स्थानीय नस्ल से हीट स्ट्रेस अनुकूलन जीन का व्यावसायिक पशु समूह में मार्कर असिस्टेड सिलेक्शन द्वारा अंतर्मन करना एक उपाय है.
पोषण में बदलाव
हीट स्ट्रेस से प्रभावित होने के कारण भैंसों के खाने की मात्रा में कमी आती है उनके शरीर में नेगेटिव एनर्जी बैलेंस होता है. इस दौरान चारा व रातिब मिश्रण में पोषक तत्वों की मात्रा में सुधार, साथ ही पशु के आहार में पूरक वसा मिलानी चाहिए. ऊर्जा संतुलन के लिए आहार में पूरक प्रोटीन अत्यधिक महत्वपूर्ण है. हीट स्ट्रेस्ड भैंसो में अच्छी गुणवत्ता तथा कम खत्म होने वाला प्रोटीन खिलाने से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी पाई गयी है.
इनवायरमेंटल बदलाव करें
हीट स्ट्रेस की वजह से भैंसों में अप्रैल से सितम्बर के महीने अत्यंत नाजुक माने जाते हैं. पशुओं के आस-पास के वातावरण में बदलाव हीट स्ट्रेस से बचाव के लिए एक अहम प्रबंधन विधि है. छांव की व्यवस्था पशुओं को सूर्य की सीधी किरणों से बचाती है. फॉगिंग व मिस्टिंग गर्मी से बचाव के कुछ और तरीके हैं. इन तरीकों में पानी की महीन बूंदों को हवा की फ्लो से तुरंत फैला दिया जाता है जो तीव्रता से उड़ जाती है. इसके चलते फलस्वरूप आस पास की हवा ठंडी हो जाती है. जबकि फव्वारे पशुओं की चमड़ी और बालों को प्रत्यक्ष रूप से ठंडा करते हैं.
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