Home डेयरी Dairy: गायों में कृत्रिम गर्भाधान के 10 बड़े फायदों के बारे में पढ़ें यहां
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Dairy: गायों में कृत्रिम गर्भाधान के 10 बड़े फायदों के बारे में पढ़ें यहां

पशु एक्सपर्ट कहते हैं कि खीस पिलाने के बाद दूसरा नंबर आता है बछिया को उचित पोषण देने का. इसके लिए आहार के साथ ही साफ पानी भी उचित मात्रा में देना चाहिए.
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. पशुपालन में हमेशा ही ज्यादा दूध देने वाले पशुओं की वैल्यू की जाती है. क्योंकि जो पशु ज्यादा दूध उत्पादन करते हैं, उससे डेयरी मालिक को ज्यादा फायदा होता है. इसके चलते बहुत से जागरुक पशुपालक अब कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का इस्तेमाल पशुओं को गाभिन कराने के लिए करते हैं, ताकि उन्हें अच्छी नस्ल का गायों, पशु मिले और इससे आने वाले वक्त में ज्यादा दूध देने वाला पशु तैयार हों. हालांकि अभी भी बहुत से लोगों के जेहन में ये सवाल उठता होगा कि आखिरी कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का क्या फायदा है.

एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो कृ​त्रिम गर्भाधान तकनीक के कई फायदे हैं, इससे डेयरी कारोबार को और ज्यादा बढ़या जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि ज्यादा से ज्यादा पशुपालक इसे अपनाएं. पशु एवं मत्स्य संसधान विकास, गव्य विकास निदेशालय बिहार की ओर से गायों में कृत्रिम गर्भाधान के फायदों के बारे में जानकारी दी गई है. बताया गया है कि प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान से कई फायदे हैं, जिसके कारण भारत में कृत्रिम गर्भाधान को काफी महत्व दिया जा रहा है.

फायदों के बारे में पढ़ें यहां
कृत्रिम गर्भाधान तकनीक द्वारा उच्च कोटि के सांडों का सीमेन उपयोग करके दुधारू पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है तथा प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में एक सांड से बहुत अधिक बछड़े या फिर बछड़िया प्राप्त किये जा सकते हैं.

कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा बड़े पैमाने पर पशुओं में नस्ल सुधार किया जा सकता है.

पशुपालकों को सांड रखने एवं पालने की जरूरत नहीं रह जाती तथा सांडों के प्रबंधन में होने वाला खर्च बच जाता है.

पशुओं के कुछ ऐसे रोग है जो प्राकृतिक गर्भाधान से फैल सकते हैं. इन रोगो में ट्राइको मोनिएसिस, केम्पाइलोबैक्टेरियोसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस प्रमुख है.

कृत्रिम गर्भाधान विधि का प्रयोग करके कई रोगों से पशुओं की रोकथाम की जा सकती है.

उच्च कोटि के गुण वाले सांडों के फ्रोजन सीमेन को संरक्षित करके काफी वर्षों तक रखा जा सकता है तथा सांड के मरने के बाद भी कृत्रिम गर्भाधान के जरिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

इस विधि में सांड का आकार और भार आड़े नहीं आता है इसीलिए छोटी, अपाहिज तथा डरपोक पशुओं को भी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित कराया जा सकता है.

सांड के मुकाबले उसके फ्रोजन सीमेन को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाना आसान और कम खर्चीला होता है.

जबकि सांड को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना बेहद ही मुश्किल, खर्चीला और जोखिम भरा कार्य है.

विदेशी सांडों के वीर्य का हमारे देश में संकर नस्ल पैदा करने के लिए उपयोग इसका एक अच्छा लाभ है.

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