नई दिल्ली. भेड़-बकरी पालन करके मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है. भेड़-बकरी को कामर्शियल तौर भी अब पाला जा रहा है. जिससे गोट और शीप फार्मर मोटा कमाते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि किसी भी जानवर को पाला जाए तो उसकी हेल्थ का ख्याल रखना होता है. जिस तरह से आम इंसान बीमार पड़ते हैं, उसी तरह से जानवर भी बीमार हो जाते हैं. आम इंसान अपनी बीमारी के बारे में बता देंते हैं लेकिन जानवरों की बीमारी का पता लगाना होता है. कुछ संकेत से इसके बारे में पता किया जाता है.
एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि अगर कुछ सावधानी बरती जाए तो जानवरों को बीमार होने से बचाया जा सकता है. बस जरूरत इस बात की है कि उन्हें समय-समय पर टीका लगवाया जाए. टीका लगाने के अलावा भी उनकी हेल्थ का ख्याल रखना होता है. बकरी और भेड़ को पेट के अंदर और शरीर पर रहने वाले कीड़ों से भी बचाना जरूरी होता है. अगर इन सब बातों का ध्यान रखा जाए तो फिर एनिमल हसबेंडरी में मुनाफा कई गुना बढ़ जाएगा. आइए जानते हैं कि कैसे बकरी और भेड़ की हेल्थ का ख्याल रखा जाना चाहिए.
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टीकाकरण के फायदे के लिए वैक्सीनेश से 7-14 दिन पहले परजीवी को खत्म करने वाली दवा पिलाना जरूरी होता है.
भेड़ चेचक का टीका केवल भेड़ और बकरी चेचक का टीका केवल बकरियों में करना चाहिए.
डिवर्मिंग, पेट के कीड़े को मारने के लिए दवाओं को पिलाना चाहिए. पहली बार डिवर्मिंग 3 महीने की उम्र में करवा लें. फिर डिवर्मिंग प्रतिवर्ष मई/जून/मानसून के पहले करवा लें.
डिवर्मिंग के लिये एलबेन्डाजोल, फेनबेनडाजोल, निलजान, आइवरमैक्टिन हर बार दवा बदल देवें इससे कीड़े के खिलाफ रजिस्टेंस विकसित नहीं हो पाता है.
बाहरी कीड़ों से बचाव के लिए साल में दो बार गर्मियों और सर्दियों से पहले भेड़ व बकरियों को ब्यूटाक्स या इक्टोमिन या टिकोमैक्स का 0.1 प्रतिशत का पानी में घोल बना कर नहलाएं.
डिपिंग करते समय सावधानी भी बरतें. पशु को नहलाने से पहले पानी पिला लें. कम से कम 5-10 भेड़ और बकरियों की टेस्ट डिपिंग 24 घंटे पहले कर लें. यदि सब ठीक है, तो सभी भेड़ व बकरियों को नहलाएं.
काक्सीडियोसिस रोग का प्रभाव 1-6 माह की आयु के बीच ही रहता है. पहली बार ड्रेन्चिग 1-3 माह की आयु में दवा जैसे एमप्रोलियम (Amprolium) 50-100 मिलीग्राम/किलोग्राम शरीर की भार की दर से 5 दिनों तक पिलानी चाहिए.
तमाम बीमारियों के बचाव के लिए जन्म के तुरन्त बाद बच्चों को खीस अवश्य पिलायें.
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