नई दिल्ली. अपनी कई खासियतों के लिए देश मशहूर साहीवाल नस्ल की गाय कैसे महाराष्ट्र में पहुंची, बहुत कम लोग इसके बारे में जानते होंगे. महाराष्ट्र में देवानी, लाल कंधारी, खिलार और कोंकण और कपिला मुख्य देशी गायें हैं. गिर, साहीवाल थारपारकर अन्य क्षेत्रों की नस्ल मानी जाती हैं लेकिन पंजाब और हरियाणा में पाई जाने वाली साहिवाल गायों को महाराष्ट्र में लाने का श्रेय अंग्रेजों को दिया जाता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जब अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित किया तो उन्होंने जगह-जगह अपनी बस्तियां स्थापित कीं.
उस समय अंग्रेजों ने दूध के लिए साहिवाल गायों को महाराष्ट्र में लाए. यहां का वातावरण उनके लिए अनुकूल था. इसलिए कई किसानों ने भी इन गायों को पालन शुरू कर दिया. वैसे तो भारत में गिर साहीवाल थारपारकर खिलार दीवानी लाल कंधार और कई अन्य देसी नस्लों की गाय ज्यादा पाली जाती हैं. इनका उद्गम मुल्तानी, लोला, मोंटगोमरी और लाम्बी बार के नाम से जाना जाता है. ये सीमावर्ती पाकिस्तान के पंजाबी मोंटगोमरी और मुल्तान प्रांत के साथ-साथ अपने पंजाब को भी माना जाता है.
वजन 350 किलोग्राम होता है
अब साहिवाल गाय पूरे देश में मशहूर है. अगर उनकी शारीरिक बनावट की बात करें तो यह लाल रंग की होती हैं और गोल सींग और लंबी गर्दन होती है. वजन 300 से 350 किलोग्राम होता है. भारत में अलग-अलग जलवायु क्षेत्र के अनुसार जानवरों को पाला जाता है. उपलब्ध संसाधनों के अनुसार वह बढ़ते भी हैं. किसी क्षेत्र में पशुओं का इस्तेमाल दूध के लिए तो किसी में जानवर का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है.
ज्यादा दूध देने की होती है क्षमता
कुछ क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल प्रदर्शन के लिए भी होता है. साहीवाल गाय की बात करें तो दूध उत्पादन के मामले में सर्वोत्तम नस्ल में से एक मानी जाती है. साहिवाल गायों का किसान व्यावसायिक रूप से पालन करना अधिक फायदा पहुंचाता है. साहिवाल गाय औसतन दूध उत्पादन 1600 से 2750 किलोग्राम है. इसके दूध उत्पादन में वसा मात्रा 4.9% होती है.
यहां मिलती है इस नस्ल की गायें
साहिवाल गाय का उपनाम मुल्तानी, मोंटगोमारी, लंबी लांबीबार है. इनकी पहचान की बात कीजिए तो नंगे कानों पर गोल सींग, लंबी गर्दन और चाबुक जैसी पूंछ, बैलों में बड़ी दुम, बैल का वजन 550 किलोग्राम और गाय का वजन 350 किलोग्राम होता है. उपलब्धता की बात की जाए तो एनडीआर में करनाल हरियाणा राज्य नई दिल्ली, कृषि महाविद्यालय, कानपुर के साथ ही पंजाब के निजी पशुपालकों से लाई जाती है.
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