नई दिल्ली. अगर पशुपालक पशुओं को बीमारी से बचाने में कामयाब हो जाएं तो वो पशुपालन से कई गुना ज्यादा फायदा ले सकते हैं. बीमारी में होता ये है कि पशु उत्पादन कम कर देते हैं. इसके अलावा बीमारी गंभीर हुई तो पशुओं की मौत भी हो जाती है. तब पशुपालक को एक झटके में हजारों रुपये का नुकसान हो जाता है. इसलिए पशुपालक भी चाहते हैं कि उन्हें बीमारी के बारे में पता रहे ताकि पहले से सतर्क हो जाएं. पशुपालकों के लिए ये अहम खबर है क्योंकि देश के 74 जिलों में ट्रिपैनोसोमोसिस नाम की बीमारी का खतरा है.
ये बीमारी पशुओं में होती है और बहुत गंभीर बीमारी है. इस बीमारी में बुखार, सुस्ती और कमजोरी दिखती है. एक्सपर्ट के मुताबिक इस बीमारी में तेजी के साथ वजन कम होता है और एनीमिया होता है. इसके चलते पशु उत्पादन कम कर देते हैं. वक्त रहते इसका इलाज न किया जाए तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते ही इसका इलाज किया जाए.
उत्तर प्रदेश और झारखंड में ज्यादा खतरा
पशुपालन को लेकर काम करने वाली निवेदा संस्था के मुताबिक देश की 75 जिले इस बीमारी को लेकर डेंजर जोन में हैं. जिसमें सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और झारखंड में हैं. असम में जहां एक जिला इसे प्रभावित हो सकता है तो वहीं बिहार के तीन जिले इस बीमारी से प्रभावित हो सकते हैं. वहीं हरियाणा में एक जिले में इस बीमारी के प्रसार की आशंका है. इसके अलावा केरल में एक, राजस्थान में एक और वेस्ट बंगाल में दो जिले इस बीमारी की जद में हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत उत्तर प्रदेश में है, यहां पर 40 जिले इसकी जद में हैं. जबकि झारखंड के भी 25 जिले जिलों में इस बीमारी के चलते पशु बीमार हो सकते हैं.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
ट्रिपैनोसोमोसिस के बारे में कहा जात है कि ये एक परजीवी संक्रमण है जो अफ्रीका में त्सेत्से मक्खियों के काटने की वजह से पशुओं में फैलती है. इसके शुरुआती लक्षणों की बात की ताए तो इसके काटने के स्थान के आसपास सूजन दिखाई देती है. अगर यहां तक मामला नहीं रुका तो फिर बुखार, और मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल है. वहीं जानवर इसके चलते कमजोर हो जाते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि शुरुआती लक्षण दिखने पर वेटनरियन की सलाह लेनी चाहिए. नजदीकी अस्पताल में इसका इलाज ढूंढना चाहिए.
क्या है इस बीमारी का इलाज
एक्सपर्ट का कहना है कि अगर इस बीमारी का जल्दी से पता चल जाए तो इलाज संभव है. ट्रिपैनोसोमोसिस का उपचार चिकित्सीय और रोगनिरोधी उद्देश्यों के लिए ट्रिपैनोसाइडल दवाओं से किया जाता है. एक्सपर्ट के मुताबिक मवेशियों के लिए चिकित्सीय दवाओं में डिमिनज़ीन एसिटुरेट, होमिडियम क्लोराइड और होमिडियम ब्रोमाइड दिया जा सकता है. मवेशियों के लिए रोगनिरोधी दवाओं में होमिडियम क्लोराइड, होमिडियम ब्रोमाइड और आइसोमेटामिडियम शामिल हैं. अगर वक्त रहते इलाज किया जाए तो बीमारी से निजात मिल सकती है.
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