Home पशुपालन Sheep Farming: ज्यादा खाने से भेड़ को हो जाती है ये बीमारी, इन दो महीने में अलर्ट हो जाएं भेड़ पालक
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Sheep Farming: ज्यादा खाने से भेड़ को हो जाती है ये बीमारी, इन दो महीने में अलर्ट हो जाएं भेड़ पालक

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुपालन में पशुपालकों अपने पशुओं को हर हाल में बीमारी से बचाना चाहिए. क्योंकि बीमारी जितनी पशु की दुश्मन है उतनी ही पशुपालन के लिए खतरनाक भी है. बारिश का सीजन है, आमतौर पर इस दौरान यह भेड़ और बकरियों का एक जीवाणु जनित रोग हो जाता है. ये रोग क्लोस्ट्रीडियम परफ्रेंजेंस के कारण और बड़े जानवरों में ओवरईटिंग के कारण हो जात है. ये बैक्टीरिया भेड़-बकरियों के अंदर खाने के दौरान चले जाते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि एंटरोटॉक्सिमिया सभी उम्र की भेड़ और बकरियों विशेषकर झुंड के अच्छी तरह से खिलाए गए और बढ़ते जानवरों की अक्सर होने वाली गंभीर बीमारी है.

वहीं खासतौर पर गैर-टीकाकरण वाले वयस्क जानवर या नवजात मेमने में इसका परिणाम घातक हो सकता है. इसलिए पशुओं को टीका लगाना जरूरी होता है. पशुओं के आहार में बदलाव जैसे अचानक वृद्धि और परिवर्तन बीमारी का मुख्य कारण है. राशन में अनाज, प्रोटीन पूरक, दूध या दूध के प्रतिपूरक (भेड़ और मेमने के लिए), और/या घास की मात्रा में वृद्धि और चारे की मात्रा में कमी के कारण भी ये बीमारी होती है. इन पोषक तत्वों का असामान्य रूप से उच्च स्तर होना, आंत में इस बैक्टीरिया की विस्फोटक वृद्धि की वजह से एंटरोटॉक्सिमिया का प्रकोप बढ़ा देती है.

92 जिलों में फैल सकती है ये बीमारी
बता दें कि पशुपालन को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था ने ये जानकारी दी है कि ये बीमारी देश के 29 शहरों में जुलाई के महीने में भेड़ और बकरियों को अपना शिकार बन सकती है. सबसे ज्यादा खतरा झारखंड राज्य में है. यहां पर 12 जिले इस बीमारी से प्रभावित हो सकते हैं. वहीं कर्नाटक में 9 जिले प्रभावित होंगे. जबकि अगस्त के महीने में देश के कुल 63 शहर इस बीमारी से प्रभावित होंगे. जिसमें सबसे ज्यादा कर्नाटक के 21 जिले प्रभावित होंगे. वहीं असम के भी 12 जिले इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं. झारखंड के 11 जिलों में ये बीमारी अपना असर दिखा सकती है.

क्या है इस बीमारी का लक्षण
एक्सपर्ट कहते हैं कि इस बीमारी में ज्यादा बैक्टीरियल टॉक्सीन आंत के साथ-साथ कई अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचाती है. ये बीमारी प्राकृतिक प्रतिरक्षा कम होने पर ज्यादा खतरनाक हो जाती है. इस बीमारी की पहचान की बात की जाए तो पशु में भूख में कमी, पेट की परेशानी, विपुल और/या पानी जैसा दस्त जो खूनी हो सकता है. जानवर अचानक से चारा छोड़ देते हैं और सुस्त हो जाते हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि पशु सुस्ती की वजह से चरने के दौरान झुंड में आखिरी में नजर आते हैं. पशु खड़े होने क्षमता खो देते हैं और पैरों को फैलाते हुए सिर और गर्दन पीछे की ओर मोड़ते हुए लेटे रहते हैं.

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