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Sheep Farming: मौसम के हिसाब से कैसे रखें भेड़ों की सेहत का ख्याल, यहां जानिए पूरे साल की डिटेल

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. भेड़ों से अधिकतम फायदा लेने के लिए यह जरूरी है कि उनकी प्रबन्ध प्रणाली मौसम अनुसार बदली जाए. 1 मेमनों का जन्म उस समय होना चाहिए, जब भेड़ों के लिए चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो. इससे भेड़ों का दूध उत्पादन अधिक होगा. जिसका असर मेमनों की बढ़ोतरी तथा मृत्युदर पर पड़ता है. अगर चारे की कमी रही और भेड़ों को प्रर्याप्त चारा नहीं मिला फिर उत्पादन पर भी असर पड़ेगा. भेड़ पालन से अधिक से अधिक फायदा लेने के लिए भेड़ पालक को वर्ष भर उत्पन्न होने वाले चारे, मौसम व उसका भेड़ पालन पर होने वाले असर का ज्ञान होना चाहिए.

गोट एक्सपर्ट कहते हैं कि मौसम के अनुसार वर्ष भर किए जाने वाले भेड़ पालन कार्यों को पांच भागों में बांटा जा सकता है. मसलन, हर मौसम के हिसाब से भेड़ पालक को पता होना चाहिए कि उन्हें भेड़ पालन कैसे करना है. यदि उन्हें इसकी सटीक जानकारी नहीं हुई तो फिर नुकसान उठाना लाजिमी है. आइए इस आर्टिकल में आपको मौसमवार क्या करना है इसकी जानकारी देते हैं.

फरवरी मार्च क्या करना चाहिएः इस समय न तो अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी. सर्दी के मौसम के बाद थोड़ी-थोड़ी घास भी उगने लगती है. इसके अतिरिक्त फसल काटने के बाद खेत में बची/गिरी फसल भेड़ों को मिलती है. इसके साथ ही भेड़ें गर्मी में आनी शुरू होती है. इस मौसम में भेड़ों को एटेरोटोक्सीमिया का रोग होने लगता है. इस समय भेड़ों को इस रोग से बचाव का टीका अपने नजदीगी पशु चिकित्सा संस्थान से लगवा लेना चाहिए. ऊन कतरने के आठ दस दिन बाद जब उनके शरीर पर कोई घाव न रहे तो वाह्य परजीवी कीटाणुनाशक घोल से नहला देना चाहिए. ऐसा करने से चिचड़े, जूं इत्यादि मर जाते हैं.

अप्रैल-जून इस तरह रखें ख्यालः इस मौसम में चारा सूखने लगता है लेकिन भेड़ें गेहूं व जौ के कटे खेतों में चराई कर अपना निर्वाह कर लेती हैं. कुछ इलाकों में बबूल की पत्तियां भी भोजन का अच्छा साधन बन जाती हैं. जिन्हें खाकर वे गर्मी में आती है. इस मौसम में चराई के साथ-साथ भेड़ों को प्रत्यामिन पूरक भी देना चाहिए.

बारिश में जुलाई व अगस्त तक इन बातों पर ध्यान देंः बारिश के साथ ही घास उगती है, जिसे खा कर भेड़ों का वजन बढ़ने लगता है. यह बढ़ोतरी चरने के लिए अच्छा चारा मिलने तथा पेट में बच्चा होने के कारण होती है. बारिश के बाद में मेमने पैदा होने लगते हैं. इस मौसम में भेड़ों को आन्त्रकृमियों से बचाने के लिए दवाई पिलाएं तथा खुरगलन रोग (एफ एम डी) व पीपीआर रोग से उनकी रक्षा करने के लिए टीका करण करवाएं.

पतझड़ ऋतु सितम्बर व अक्तूबर में ये करेंः भेड़ों की ऊन कतरने का काम शुरू हो जाता है. इसी समय निकृष्ट भेड़ों को छांट कर अलग किया जा सकता है. पतझड़ में मेमने पैदा होने शुरू हो जाते हैं और बची हुई भेड़ें ग्याभिन हो जाती है. नर मेमनों का बधियाकरण भी इसी समय करवाया जाता है. मक्का आदि कटने से भेड़ों को पर्याप्त भोजन मिल जाता है. पहाड़ों में चरने गई भेड़ें चराई के बाद नीचले इलाकों में आने लग जाती है.

ठंड में नवम्बर-जनवरी तक सर्दी से बचाएंः इस मौसम में घास सूखने लगती है. घास की घास देनी चाहिए. मेमनों को सर्दी से बचाना चाहिए.भेड़ों को सूखी तथा अन्त कृमी नाशक दवाई पिलानी चाहिए.

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