नई दिल्ली. समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण एमपीईडीए के (MPEDA) अध्यक्ष ने डी. वी. स्वामी ने मेसर्स मयंक एक्वाकल्चर फार्म, सूरत, गुजरात का दौरा किया. सूरत जिले के ओलपाड तालुका के मंडरोई गांव स्थित एक्वाकल्चर फार्म के अपने दौरे के दौरान उन्होंने कहा कि अच्छी प्रबंधन पद्धतियां, जैव सुरक्षा और फार्म का आधुनिकीकरण झींगा पालन में उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं. वहीं दौरान डायरेक्टर डॉ. मनोज शर्मा ने सख्त मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का पालन करते हुए 50 हेक्टेयर में एल वन्नामेई और पी. मोनोडॉन की खेती पर जोर डाला.
बता दें कि यह फार्म सूरत जिले में पहला एमपीईडीए शापहारी-प्रमाणित सुविधा केंद्र है. उन्होंने फार्म की सफलता का श्रेय जैव सुरक्षा उपायों, बीएमपी प्रोटोकॉल, उपचारित और फिर से परिसंचारित समुद्री जल, ऑटोफीडर और न्यूनतम इनपुट उपयोग को दिया. उन्होंने कहा कि झींगा हैंडलिंग यूनिट की स्थापना में सहयोग देने, सीमित पहुंच, कटाई के बाद की गुणवत्ता और कम नुकसान सुनिश्चित करने के लिए एमपीईडीए को धन्यवाद दिया. इस मौके पर डॉ. एस. कंदन, संयुक्त निदेशक (प्रशिक्षण), एमपीईडीए, नरेश टाम्पेडा, डीडी, वलसाड सुब्रे पवार, एडी एमपीईडीए आरडी, भाविन, जेटीओ, एसआरडी, वलसाड और आशीष, NaCSA एफएम भी मौजूद रहे.
इस तरह हुई झींगा पालन की शुरुआत
गौरतलब है कि साल 1994 में, डॉ. शर्मा गुजरात गए और उन्होंने खारे पानी में झींगा पालन के एक ऐसे क्षेत्र को देखा जिसका इस्तेमाल नहीं हुआ था. सूरत के दांडी गांव में छह प्रायोगिक तालाबों से शुरुआत करते हुए, उन्हें एक वायरस के हमले और सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंधों के रूप में असफलताओं का सामना करना पड़ा. इसके बाद साल 1998 में नए सिरे से उन्होंने इसकी शुरुआत की और आठ टन झींगा उत्पादन किया. जिससे क्षेत्र के किसानों में उत्साह का माहौल बन गया. उनकी कामयाबी ने जिले के सैकड़ों तटीय मछुआरों को झींगा पालन को अपनी आजीविका के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया.
100 करोड़ रुपए का खड़ा कर दिया बिजनेस
डॉ. मनोज एम. शर्मा ने गुजरात की बंजर तटीय भूमि को फलते-फूलते झींगा फार्मों में बदलकर गुजरात झींगा जलकृषि में क्रांति लाने का काम किया. एक्वाकल्चर और SAFA (सूरत एक्वा फार्मर्स एसोसिएशन) के सहयोग से, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा दिया, ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाया और 100 करोड़ रुपये का एक व्यक्तिगत बिजनेस खड़ा कर दिया. उनके और समूह के प्रयासों ने गुजरात को विश्व स्तर पर प्रीमियम झींगा आपूर्ति में एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना दिया.
इस तरह हुए कामयाब
डॉ. शर्मा की यात्रा महाराष्ट्र के नांदेड़ से शुरू हुई. बचपन में ही उन्हें जलीय जीवन में रुचि थी और वे डॉक्टर या आईएएस अधिकारी बनना चाहते थे लेकिन मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चूकने के बाद, उन्होंने केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई), मुंबई से जलकृषि प्रबंधन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की ओर रुख किया. डॉ. शर्मा ने पढ़ाई के बजाय व्यावहारिक गतिविधियों को प्राथमिकता दी, एक ऐसा निर्णय जिसने भारत में जलकृषि की नई परिभाषा गढ़ी. रात भर जागते हुए, डॉ. शर्मा को एहसास हुआ कि एकजुटता ही समाधान है.

जानें कितना उत्पादित होता है झींगा
सामूहिक जरूरतों की आवश्यकता को समझते हुए, डॉ. शर्मा ने एक संघ की स्थापना का विचार रखा और इसके संस्थापक सदस्य के रूप में सूरत एक्वाकल्चर फार्मर्स एसोसिएशन (SAFA) की स्थापना की. आज, SAFA 1000 से ज्यादा किसान सदस्यों के साथ सबसे सफल किसान संघों में से एक है और इसका उद्देश्य एक स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल झींगा पालन प्रणाली विकसित करना है. मौजूदा वक्त में, SAFA 3000 हेक्टेयर से ज्यादा झींगा फार्मों का रखरखाव करता है, जिनसे हर साल 15 हजार 000 मीट्रिक टन झींगा उत्पादन होता है.
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