नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग के जरिए न सिर्फ ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए अवसर पैदा किये जा सकते हैं, बल्कि ग्रामीण आबादी के पोषण स्तर में भी सुधार किया जा जा सकता है. ये देखा गया है कि जहां दाल प्रोटीन का मुख्य सोर्स है, वहां पर लोगों में पोषण की कमी पाई गई है. ऐसे क्षेत्रों में पोल्ट्री फार्मिंग को बढ़ावा देकर प्रोटीन की कमी को भी दूर किया जा सकता है. इसको लेकर खासतौर पर हिमाचल प्रदेश में हिम कुक्कुट पालन योजना की शुरुआत की गई है. इसके तहत प्रदेश के गरीब परिवार केे लोगों को पोल्ट्री फार्म खोलने में मदद की जाती है और उन्हें चूजे भी उपलब्ध कराए जाते हैं. ताकि वो अपने लिए रोजगार का दरवाजा खोल सकें और पोषण की समस्या को खत्म कर सकें.
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में कुक्कुट पालन ग्रामीण आबादी विशेषकर भूमिहीनों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह इस तथ्य के कारण है कि कुक्कुट पालन करने के लिए न्यूनतम पूंजी की जरूरत होती है वहीं तुरंत रिटर्न भी सुनिश्चित होता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के जीवन में सुधार होता है. पोल्ट्री प्रोडक्ट की बिक्री से हासिल आय किसानों को बीज, कीटनाशकों आदि की खरीद के लिए अतिरिक्त आय अर्जित कर फसल उत्पादन की इजाफे में भी मदद करती है. यही वजह है कि इस प्रदेश में अंडा और मुर्गी मांस के उत्पादन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.
यहां होती है बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग
हिमाचल प्रदेश में पोल्ट्री उत्पादन आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में गरीब तबके के लोग करते हैं. यहां पोल्ट्री इकाइयों की बजाये लघु पोल्ट्री फार्म यानि 50 से 100 पक्षियों वाले फार्म को पसंद करते हैं. ये बैकयार्ड इकाइयां काफी लोकप्रिय हो रही हैं क्योंकि यह अतिरिक्त व्यय किए बिना अतिरिक्त आय के साथ-साथ पोषण भी प्रदान करती हैं. प्रदेश में पशुपालन विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कुक्कुट विकास योजनायों के माध्यम से संकर नस्ल के कुक्कुट पक्षियों को आवंटित किया जाता है जिसने मुर्गी पालन कार्यक्रम को सफल बनाया है. लाभार्थी एक बार में 3000 चूजों को पालने में सक्षम नहीं होगा, इसलिए आवश्यकता के अनुसार 1000 चूजों की किश्त में चूजे उपलब्ध कराने का इस योजना में प्रावधान किया गया है.
कौन कर सकता है आवेदन
इस योजना के तहत लक्षित समूह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/सामान्य वर्ग के किसान होंगे जिन्होंने सरकारी पोल्ट्री फार्मों से कुक्कुट पालन का ट्रेनिंग लिया है. विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न व्यावसायिक ब्रायलर योजना के तहत (दो वर्ष या उससे अधिक) पहले लाभान्वित किये गए कुक्कुट पालकों को भी इस योजना के तहत फायदा दिया जा रहा है. इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को संबंधित अधिकारी/पशु चिकित्सा अधिकारी को निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन करना होगा. आवेदक को आवेदन के साथ यह शपथ पत्र देना होगा कि वह योजना के नियमों और शर्तों का पालन करेगा तथा कामर्शियल ब्रॉयलर योजनाओं के तहत इससे पहले ऐसा कोई लाभ नहीं लिया है.
आवेदन की क्या हैं शर्तें
शर्त ये भी हहै कि इस योजना के अंतर्गत स्थापित की गई कुक्कुट इकाई को बंद नहीं किया जा सकता है. यदि वह योजना को बंद कर देता है या योजना के किसी भी नियम और शर्त का उल्लंघन करता है, ऐसी स्थिति में उसे योजना की पूरी राशि ब्याज सहित 12 फीसदी की दर से वापस करनी होगी. उक्त राशि भू-राजस्व के बकाया अनुदान राशि के रूप में वसूली की जाएगी. लाभार्थी को सम्बंधित भूमि के स्वामित्व/कब्जे को स्थापित करने वाले दस्तावेजों की सत्यापित/प्रमाणित प्रति प्रदान करनी होगी जिस पर शेड का निर्माण हुआ है/निर्माण किया जाना है. वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी/पशु चिकित्सा अधिकारी लाभार्थी के आवेदन को नियंत्रण अधिकारी के पास अग्रेषित करेंगे, जो पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आवेदन की जांच के बाद लाभार्थियों का चयन करेंगे. बताते चलें कि कुल पूंजी निवेश में से 60 फीसदी अनुदान सहायता होगी. जबकि अधिकतम 40 फीसदी लाभार्थी अंश/बैंकों द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को प्रदान किया जाने वाला घटक होगा.
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