नई दिल्ली. कैरेसियस ऑरैटस गोल्ड फिश ताजे पानी में रहती है. ये नदियों, झीलों, तालाबों और स्थिर या फिर बहते पानी के साथ भी रहती है. गोल्डफिश (Goldfish) अधिकतर बड़े तालाबों में आसानी से प्रजनन करती है. यह खूले एक्वेरियम (Aquarium) जिसमें खूब सारी ऑक्सीजन तथा पत्तेदार पौधे हों उनमें भी आसानी से रहती है और प्रजनन भी करती है. एक्सपर्ट का कहना है कि एक्वेरियम के व्यवसाय के लिए गोल्ड फिश भी एक बेहतर प्रजाति है. इसकी कीमत भी ज्यादा है. रिपोर्ट की मानें अच्छी क्वालिटी वाली इस प्रजाति की फिश की कीमत 125 डॉलर से 300 डॉलर के बीच होती है.
एक्सपर्ट के मुताबिक जापान और चीन द्वारा गोल्डफिश का चयनित प्रजनन कराया गया, जिसके कारण एक एशिया उप-प्रजाति का विकास हुआ. इसके स्केल कम हार्ड, चौड़ाई ट्राइएंगल, नाक का आगे को उभरा हुआ भाग, आंख के व्यास की तुलना में लम्बा होता है. इसका धातुई लाल-संतरी शरीर का रंग इसके फिन के मुताबिक होता है. युवा मछली शुरुआती अवस्था में हरे रंग में होती है और सिर्फ तीन महीने बाद अपने सही रंग को हासिल कर लेती है.
प्रजनन के बारे में पढ़ें यहां
प्रजनन के बारे में बात की जाए तो इसके लिए एक सबस्ट्रेट स्पेनर (Substrate spawner) की जरूरत होती है क्योंकि माता-पिता अपने अंडों को खा जाते हैं. इसी कारण अंडे देने के बाद माता-पिता को वहां से हटा दिया जाता है. फ्राई (Fry) तापमान में बदलाव के लिए संवेदनशील होते हैं. आजकल स्पैन (spawn) और मिल्ट (Milt) हाथों से निकाला जाता है और मिलाया जाता है. ताकि अधिक से अधिक अंडे को फर्टिलाइज्ड किया जा सके. इनके अंडे चिपचिपे होते हैं, यह अंडों की देखभाल नहीं करते तथा लारवे खूले पानी में रहते हैं लेकिन पालतू गोल्डफिश (Goldfish) की उम्र लम्बी होती है. वहीं अंडो के बेहतर विकास के लिए ठंडे पानी की जरूरत होती है.
कई रंग लिए होती हैं ये मछलियां
ये मछलियां कई रंग लिए होती हैं. ऑलिव ब्राऊन, ऑलिव ग्रीन, चांदी जैसा रंग और सुनहरा रंग आदि. इन रंगों का संयोजन समय—समय पर बदलता रहता है. इनका औसत और अधिकतम आकार 15-20 सेंटी मीटर होता है. 17-28 डिग्री सेल्सियस तापमान में आसानी से रहती हैं. भोजन और आहार की आदत की बात की जाए तो सर्वाहारी होती हैं. वहीं सूखा भोजन ज्यादा खाना पसंद करती हैं. खाने के लिए छोटे कीट पंसद करती हैं और हरा भोजन भी पंसद करती हैं. इसका स्वभाव शान्तिपूर्ण है तथा अन्य कार्यों के साथ प्रजनन कर लेती है. हिमाचल प्रदेश मत्स्य विभाग ने दियोली (घाघस), बिलासपुर में इसका प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया था.
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