नई दिल्ली. भारत में जब ब्रिटिश राज्य था तब, पहली बार 1880 के दशक में कई गौरक्षा को दंगे हुए. 1893 और 1894 में गाय हत्या पर विवाद हुआ और यह दंगे में तब्दील हो गया. मौका था मुसलमानो के त्योहार ईद उल अजहा का. जिस मौके पर पशुओं की बलि देने का चलन है. मौजूदा दौर में भी गोकशी को लेकर तमाम तरह के विवाद उठते रहे हैं. हालांकि मुस्लिमों की तरह से ये कहा जाता रहा है कि बकरीद के मौके पर मुसलमान द्वारा गौकशी नहीं की जाती है. बावजूद इसके एक पक्ष यह समझता है कि ऐसा अभी हो रहा है.
जबकि भारत में मुगलकाल के दौरान भी शहर कोतवाल की ओर से ऐसा निर्देश दिया जाता था कि ईद उल अजहा के मौके गाय की कुर्बानी न की जाए. गाय से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है. यही वजह है कि मुगलकाल में गाय की कुर्बानी देने पर पाबंदी थी. ताकि किसी दूसरे धर्म के मानने वाले लोगों की आस्था को ठेस न पहुंचे. वहीं मौजूदा दौर में भी इसके खिलाफ कई फतवे जारी हुए हैं.
ईरान में बनी थी फिल्म
यहां आपको यह भी बताते चलें कि 1969 में ईरान में एक मुसलमान युवक और उसकी गाय की मोहब्बत पर फिल्म दॉ काऊ बनी थी. इस फिल्म में मुस्लिम युवक जो नि:संतान था. गाय को ही अपनी संतान मानता था और उससे बातें भी करता था. किसी ने उसकी गाय को मार दिया था, तो ग्रामीणों ने उसे बताए बिना ही उसे दफन कर दिया था. जिसके चलते वह युवक बाद में खुद को ही गाय समझने लगा था. नाम फिल्म में उसका नाम हसन था. यह फिल्म ईरान में तब बनी थी, जब वहां रजाशाह पहलवी का दौर था. हालांकि तब इस फिल्म को बैन कर दिया गया था. बाद में ईरान के इंकलाब के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खुमैनी के दौर में इस फिल्म को ईरान में रिलीज किया गया और यह सुपरहिट हुई. अयातुल्लाह इस फिल्म की तारीफ की थी.
भारत में मॉब लिचिंग हुई
भारत में पिछले कुछ समय से गौहत्या के आरोप में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं भी सामने आईं. साल 2017 में हरियाणा के नूंह मेवात जिले के रहने वाले पहलू खान अपने बेटों के साथ जयपुर के हटवाड़ा पशु मेले से दुधारू पशु खरीद कर ले जा रहे थे. इस दौरान अलवर में बहरोल पुलिया के पास भीड़ ने गाड़ी रुकवा कर पहलू और उनके बेटों के साथ मारपीट की थी. जहां पहलू खान की अस्पताल ले जाते वक्त मौत हो गई थी. वहीं उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार के दौरान ग्रेटर नोएडा में दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी गई थी. दरअसल बीफ पकाने की अफवाह फैलने के बाद अखलाक के घर पर हमला किया गया था. जिसमें उनकी मौत हो गई थी. जबकि फोरेंसिक लैब रिपोर्ट में यह बात सामने आ गई थी कि फ्रिज में पाया गया मीट तब बकरी का था. हालांकि रिपोर्ट पर सवाल भी उठाए गए थे.
मुगलकाल में सजा-ए-मौत मिलती थी
वहीं दूसरी ओर गोकशी के खिलाफ फतवे भी जारी होते रहे हैं. 20वीं सदी के पूर्व में मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली और महात्मा गांधी के बीच गोकशी को लेकर पत्राचार इतिहास में दर्ज है. 1921 में प्रकाशित लेख ख्वाजा हसन निजामी दिल्ली की किताब तरीके कुर्बानी एक काऊ किताब के मुताबिक भोपाल रियासत की पुस्तकालय में मुगल शहंशाह बाबर का फरमान मौजूद है. 935 हिजरी में जारी किए की फरमान में कुर्बानी से परहेज करने को कहा गया था. दअअरल, मुगल बादशाह बाबर और अकबर ने बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे इसलिए बाकायदा फरमान जारी किए थे. जिसमें कहा गया था की कुर्बानी से पहरेज करें. अकबर ने तो गौकशी करने वालों के खिलाफ सजा-ए-मौत है मौत तक फरमान जारी किया हुआ था.
गौहत्या को लेकर जारी हुए हैं फतवे
यहां ये भी बता दें कि मौजूदा वक्त में भी कई मुस्लिम मौलानाओं ने गौकशी खिलाफ फतवा जारी किया हुआ है. ताकि कोई भी त्योहार और अन्य मौके पर गायहत्या न करे. ऐसा इसलिए किया गया है कि ताकि देश में अमन भाईचारा बरकरार रहे. इस कृत्य की वजह से देश का माहौल न खराब हो. वहीं भारत में रहने वाले शिया संप्रदाय के लोगों के लिए इराक और ईरान के सर्वोच्च मौलाना, आयतुल्लाह खुमैनी और अयातुल्लाह सीस्तानी ने भी फतवा जारी किया है. इसमें भारत में गोकशी हराम करार दिया गया है. यानी इसे शरीयत के खिलाफ काम करार दिया गया है. यही वजह है कि शिया समुदाय के लोग भी इसकी पाबंदी करते हैं.
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