नई दिल्ली. देश में जो भी बकरी पालक बकरी पातलत है उसके लिए बकरीद का त्योहार एक बड़ा मौका होता है. ये वही सीजन होता है जब कारोबारियों को अच्छा मुनाफा मिलता है. इस मौके पर देश के साथ ही विदेशों में भी बकरों की खासा डिमांड होती है. वहीं ये ऐसा मौका होता है जब पशु पालकों को आम दिनों की अपेक्षा बकरों के रेट से 25 से 30 फीसद तक ज्यादा मुनाफा होता है. जबकि बकरीद के मौके पर बकरों की कुछ खास नस्ल होती है जिसकी खासा मांग रहती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर खास नस्ल का बकरा कुर्बानी की शर्तों उतरता है तो पशु पालकों को ग्राहकों से अच्छा दाम मिलता है. जिसका फायदा पशु पालकों को मिलता है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि जमनापरी और जखराना आदि नस्ल पशु पालक मीट के लिए पालते हैं. क्योंकि देश बकरों की ऐसी पांच 5 नस्लें हैं जो मीट के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी ये ग्राहकों की पहली पसंद होते हैं. हालांकि ज्यादातर बकरीद के लिए बेचा जा रहा बकरा एक साल से ऊपर का मांगा जाता है. जबकि बहुत से ग्राहक शरीर का कोई भी अंग कटा हुआ न हो और देखने में खूबसूरत इन बातों पर ज्यादा तवज्जो देते हैं और इसी हिसाब से रेट भी देते हैं. गौरतलब है कि बकरीद के दौरान उत्तर भारत में बकरों की चार बड़ी मंडी सजती है. इन्हीं मंडियों से निकला हुआ बकरा देश के दूसरे इलाकों में भी बेचा जाता है. वहीं बकरीद के मौके कुर्बानी के लिए अरब देशों में भी जाता है, क्योंकि हज के मौके पर बकरीद वाले दिन हर हाजी को कुर्बानी देनी होती है. बकरों की बड़ी मंडी जसवंत नगर (यूपी), कालपी (मध्य प्रदेश), महुआ, अलवर (राजस्थान) और मेवात (हरियाणा) मंडी हैं.
यूपी का कौन सा बकरा है ग्राहकों की पहली पसंद
वैसे तो देश में बकरे-बकरियों की करीब 37 नस्ल हैं. बहुत सी नस्लों के बकरियों को सिर्फ और सिर्फ दूध के लिए पाला जाता है जबकि कुछ दूध और मीट दोनों के लिए होती हैं. वहीं यूपी बरबरी नस्ल की बकरी या बकरे लोगों की पहली पसंद होते हैं. इसकी देश के अलावा अरब देशों में भी इसकी डिमांड कम नहीं है. इसके साथ ही बंगाल का ब्लैक बंगाल, पंजाब का बीटल बकरा खूब पसंद किया जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि बरबरा बकरा- इस नस्ल के बकरी की हाइट से ढाई फुट तक कम होता है. हाइट ज्यादा न होने के कारण ये देखने में मोटी ताजा नजर आता है. जबकि एक साल की उम्र में ये कुर्बानी के लायक भी हा जाता है. ये सब वजहें हैं कि ये ग्राहकों को पसंद आता है. पहचान की बात की जाए तो इसके कान छोटे और खड़े होते हैं. ये आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, मथुरा और कानपुर में मिलते हैं. इस बकरे के रेट कम 12 हजार रुपये से खुलते है। और कई बकरे तो 50 हजार रुपये से भी ज्यादा तक बिक जाते हैं.
जमनापारी बकरो की डिमांड कम नहीं
यूपी के इटावा नस्ल के बकरों की खासी डिमांड होती है. ये मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी मिलता है. इसकी पहचान यूं होती है कि ये लम्बा होता है और इसके कान मीडियम साइज बने होते हैं. देखने में मोटा और भारी होता है. जबकि इसका रंग आमतौर पर सफेद होता है. लेकिन कभी-कभी कान और गले पर लाल रंग की धारियां भी रहती हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि बकरे-बकरी दोनों के पैर के पीछे ऊपर लम्बे बाल पाए जाते हैं. जबकि इन बकरों की नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छे भी देखने को मिलते हैं, ये 15 से 20 हजार रुपये में आसानी से मिल जाता है.
जखराना नस्ल का बकरे के बारे में भी जानें
जखराना नस्ल का बकरा राजस्थान के अलवर के एक गांव जखराना का है. यही वजह है कि इन नस्लों के बकरों को जखराना कहा जाता है. असली जखराना की पहचान करनी है तो ऐसे करें. ये पूरी तरह से काले रंग के होते हैं, लेकिन इसके कान और मुंह पर सफेद रंग का धब्बा होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जखराना बकरी के पूरे शरीर पर इसके अलावा कोई दूसरा निशान नहीं होता है. सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास कहते हैं कि जखराना एक ऐसी नस्ल है, जिसके बकरे और बकरी एक साल में 25 से 30 किलो का वजन हासिल कर लेते हैं. जबकि इस नस्ल के बच्चे देने की क्षमता भी ज्यादा होता है. इस नस्ल की बकरी जखराना के मुकाबले 60 फीसदी दो या तीन बच्चे तक देती हैं. बकरीी पर इसकी खूब डिमांड रहती है.
राजस्थान की शान है इस नस्ल का बकरा
एक्सपर्ट कहते हैं कि सोजत नस्ल का बकरा राजस्था्न के नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में मिलता है. पहचान की बात की जाए तो ये जमनापरी की तरह ही सफेद रंग का बड़े आकार वाला होता है. पशु पालक इसे मीट के लिए पालते हैं. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो तक वजन हासिल कर लेता है. जबकि बकरी दिनभर में एक लीटर दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्रा में मांग होती है. वहीं सिरोही- ये ब्राउन और ब्लैक कलर में पाए जाते हैं. इस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस नस्ल का बकरा देखने में खासा ऊंचा होता है. इसलिए बकरीद पर ये पंसद किया जाता है. ये नस्ल सिर्फ राजस्थान में ही पाई जाती है. ये बकरा बाजार में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये में मिलता है. वहीं तोतापरी नस्ल का बकरा पतला और लम्बा होता है. वहीं इसकी ऊंचाई कम से कम 3.5 से 4 फुट तक होती है. हालांकि इस नस्ल का बकरा बाजार में बिकने के लिए 3 साल लगता है. इस नस्ल के बकरे हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर जिले पाए जाते हैं. इसकी बिक्री 12 से 13 हजार रुपये से शुरु होती है.
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