नई दिल्ली. बकरी के मेमनों को कई तरह की बीमारियों हो जाती हैं. जिसकी वजह बच्चों के बाड़ों में सही से साफ-सफाई का न होना, खान-पान और रखरखाव ठीक से न होना. वहीं सर्दी-गर्मी से बचाव की व्यवस्था न होना, समय पर खीस न पिलाना, अधिक मात्रा में दूध पिलाना और अन्य सामान्य प्रबंधन का समय पर न करना है. एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी के बच्चों में बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को बड़े जानवरों से अलग बाड़े में रखना चाहिए. वहीं ईटी के टीकाकरण को प्रभावी बनाने के लिये 3-4 सप्ताह बाद बूस्टर डोज अवश्य लगवायें. साथ ही पीपीआर को तीन वर्ष के गैप पर और बकरी चेचक के टीके को एक वर्ष के गैप पर अवश्य लगवाएं.
यहां हम आपको बकरी के मेमनों की कुछ बीमारियों के बारे में बताने जा रहे हैं. इसमें से दस्त रोग भी है. इस बीमारी में बच्चों को बुखार (ज्वर) आता है. पीले या सफेद रंग के दस्त होते हैं. शरीर में पानी व सॉल्ट की भारी कमी हो जाती है. तुरंत उपचार न होने पर मृत्यु भी हो जाती है. इस रोग से बचाव के लिए बाड़ों की सफाई पर विशेष ध्यान दें. बाड़ों से मैगनी और मल को नियमित रूप से दिन में 2 से 3 बार हटाना चाहिए. जन्म के बाद नवजातों को खीस पिलाना चाहिए. इस रोग से बचाव में विशेष रूप से सहायक होता है. पशु चिकित्सक के निर्देश के मुताबिक एन्टीबायोटिक दवाओं से तुरन्त उपचार करवाना चाहिए.
मेमनों को पतले दस्त होने लगते हैं
बच्चों में दूसरी प्रमुख बीमारी निमोनिया है जो बैक्टीरिया और वायरस तथा कभी-कभी दोनों की वजह से संक्रमण से होता है. इस बीमारी से प्रभावित मेमनों को तेज बुखार, खांसी, नाक व आंख से पानी बहना, सांस लेने में कठिनाई होती है. यह रोग संक्रमित हवा, पानी व दाने-चारे से फैलता है. इस रोग के कारण बच्चों की मृत्युदर बढ़ जाती है. वहीं बकरी के बच्चों को कुकडिया (काक्सीडियोसिस) परजीवी जनित बीमारी भी होती है. इस बीमारी में बच्चों को पतले दस्त एवं कभी-कभी दस्तों में खून का आना, चमड़ी की चमक कम होना, शारीरिक भार एवं बढ़वार दर का लगभग रूक जाना प्रमुख हैं. इसलिए इस रोग से मेमनों का बचाव बेहद जरूरी है.
ये बीमारी हैल्दी बच्चों को बनती है बीमार
मोहा बीमारी पशुओं में वायरस की वजह से होती है. रोगग्रस्त मेमनों के मुंह व होठों पर दाने बन जाते हैं. मुंह पर घाव बन जाते हैं जिससे मेमने ठीक से खा पी नहीं सकते हैं. इसके चलते लगातार कमजोर होते जाते हैं और मृत्यु भी हो सकती है. मुंह के दानों पर 20 प्रतिशत पोटेशियम परमेग्नेट का घोल लगाना चाहिए. आंत्र विषाक्तता (इन्ट्रोटॉक्सीमिया) यह बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है. ये बीमारी स्वस्थ्य बच्चों में अधिक होती है. बच्चों के पेट में तेज दर्द होता है. दर्द के कारण बच्चे पैर छटपटाते हैं. पेट फूल जाता है व दस्त भी आते हैं. बीमारी की तीव्रता होने पर बच्चे मर भी जाते हैं. यह बच्चों में अचानक खान-पान परिवर्तन, अधिक मात्रा में दाना-चारा खाने के कारण आंतों में जहर फैलने से होता है. पशु चिकित्सक की सहायता से इस रोग तुरंत उपचार कराना चाहिए.
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