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Tibetan Sheep: अरुणाचल प्रदेश की पहचान है तिब्बती भेड़, जानें इसकी खासियत

तिब्बती भेड़ों को ओविस एरीज भी कहते हैं. ये एक ऐसी नस्ल की भेड़ें हैं, जो तिब्बती पठार में मिलती हैं. ये भेड़ें सर्दी और कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में भी अच्छी तरह से रह सकती हैं.
तिब्बती भेड़।

नई दिल्ली. भेड़ पालन कम खर्च में शुरू हो जाता है. दरअसल भेड़ पालने के लिए महंगे घर या शेड़ की जरूरत नहीं होती है. इनका आहार भी काफी सरल होता है. भेड़ पालन सरल इसलिए है. क्योंकि भेड़ आकार में छोटी होती है. कम जगह में आराम से रह सकती हैं. जल्दी-जल्दी बड़ी हो जाती हैं. इतना ही नहीं यह मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लेती हैं. भेड़ पालन पेड़, घास खिलाकर किया जा सकता है. भेड़ पालने से मुनाफा भी ठीक-ठाक हो जाता है. आज एक ऐसी ही नस्ल की भेड़ की बात कर रहे हैं, ये हैं अरुणाचल प्रदेश की तिब्बती भेड़. इस नस्ल को पालकर हर तरीके से लाभ लिया जा सकता है. इन भेड़ों से ऊन, मांस और दूध का बिजनेस किया जा सकता है. बकरियों की अपेक्षा भेड़ का आहार और पालन आसान है. भेड़ मीट, ऊन और दूध के लिए जानी जाती है. देश के हर हिस्से में भेड़ पालन किया जाता है.

भेड़ हर तरह की जलवायु में पाली जा सकती है. भेड़ घास खाना पसंद करती हैं, लेकिन अगर आप मुनाफे के लिए इनका पालन करेंगे तो चराई के अलावा विशेष आहार का ध्यान रखना होगा. अरुणाचल प्रदेश की तिब्बती भेड़ बेहद कठिन जलवायु में जीवन यापन करती है. ये कम ऑक्सीजन वाली जगहों पर बेहद आसानी से अपना जीवन जीती है. खाने के कम साधनों में भी ये अपना भाेजन तलाश कर लेती है.

जानिए तिब्बती भेड़ों के बारे में ये खास बात: तिब्बती भेड़ों को ओविस एरीज भी कहते हैं. ये एक ऐसी नस्ल की भेड़ें हैं, जो तिब्बती पठार में मिलती हैं. ये भेड़ें सर्दी और कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में भी अच्छी तरह से रह सकती हैं. तिब्बती भेड़ें स्थानीय लोगों के लिए मांस, ऊन और दूध का जरिया होती हैं. तिब्बती भेड़ अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग और पश्चिमी कामेंग जिले पाई जाती है. तिब्बती भेड़ काले या भूरे चेहरे के साथ सफ़ेद कोट वाली होती हैं. इनकी नाक उत्तल, विशिष्ट रोमन होती है. तिब्बती भेड़ों के कान छोटे होते हैं. महीन और घनी ऊन इनके शरीर पर होती है.

भेड़ों की ये प्रजातियां भी हैं काम की: भेड़ की प्रजातियां की बात की जाए तो लोही, कूका और गुरेज को दूध के लिए ज्यादा मुफीद माना जाता है. जबकि हसन, नेल्लोर, जालौनी, मांड्या, शाहवादी और बाजीरी को मांस के लिए बेहतर नस्ल माना जाता है. वहीं बीकानेरी, बैलरी, चोकला, भाकरवाल, काठियावाड़ी और मारवाड़ मीट के लिए अच्छी नस्ल माना जाता है.

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