नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े पैमाने पर पशुपालन किया जा रहा है. हालांकि यहां पर पशुओं के लिए चारे की समस्या है दिन-ब-दिन बढ़ रही है. हरे चारे के लिए जमीनों की कमी हो रही है. जबकि सूखा चारा भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. इससे पशुपालन करना बेहद ही मुश्किल हो रहा है. इस वजह से सरकार इस समस्या को खत्म करने का उपाय ढूंढ रही है. इसी के तहत उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने उत्तर प्रदेश चारा नीति बनाई है, जो 2024 से 29 तक के लिए बनाई गई है. जिसमें पशु पालन में चारे की समस्या को खत्म करने के लिए कई काम किया जाना है.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रदेश में सूखे चारे के भंडारण और परिवहन को सुगम बनाने के लिए कंप्रेस्ड फाडर ब्लॉक की इकाइयों स्थापना के लिए उद्यमियों को पूंजीगत अनुदान, ब्याज की व्यवस्था करने की बात कही गई है. जिससे कंप्रेस्ड फाडर ब्लॉक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा मिल सके. वहीं सूखे चारे के उत्पादन को पशु आहार के लिए इस्तेमाल किया जा सके. ताकि उत्पादन भी किसी भी तरह का असर न पड़े.
सरकार देगी इसे बढ़ावा
सरकार अपनी इस नीति के तहत उद्यान विभाग के सहयोग से हॉर्टिकल्चर क्षेत्रों में फल वृक्षों के मध्य खाली जगहों में लेग्यूम चारा फसलें एवं बाग-बगीचों के चारों ओर बहुवर्षीय चारा फसलों नेपियर घास, गिनी ग्रास, स्टाईलो आदि की रोपाई के लिए किसानों और पशुपालकों को प्रोत्साहित करेगी. साथ इसके फायदे को गिनाने के लिए जागरूक भी किया जाएगा. जिससे चारा उत्पादन के साथ-साथ हॉर्टिकल्चर फसलों को भी परस्पर लाभ हो तथा जिससे मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार होगा.
चारा नीति का क्या है फायदा
पशुओं को पर्याप्त चारे की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी.
पशुधन के उत्पादन एवं उत्पादकता में चारा नीति की वजह से इजाफा होगा.
पशुधन के स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, गर्भधारण दर में वृद्धि होगी.
फसलों की कटाई-मड़ाई के बाद चारे की होने वाली नुकसान पर अंकुश लगेगा एवं कम किया जा सकेगा.
चारा उत्पादकों की आय में वृद्धि के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं का विकास तथा वर्ष भर हरे चारे की आपूर्ति सुनिश्चित होगी.
चारा उत्पादन की परम्परागत पद्धति में बदलाव होगा, जिससे चारा उत्पादन पर लागत कम होगी.
प्रदेश में पशुधन संरक्षण और संवर्धन के साथ-साथ स्थायी एवं टिकाऊ डेयरी क्षेत्र का विकास होगा.
जिस भूमि पर कृषि नहीं की जा सकती है, उसका इस्तेमाल किया जा सकेगा.
दैवीय आपदा की स्थिति में चारे और भूसे की कमी की पूर्ति की जा सकेगी.
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